भारतीय व्यापारियों के लिए जमा और निकासी

आईसीईएस (ICES) के बारे में
आईसीईएस क्या है?
भारतीय सीमा शुल्क ईडीआई प्रणाली (आईसीईएस) अब 256 बड़े सीमा शुल्क स्थानों पर परिचालित है जो आयात और निर्यात खेप के मामले में भारत के अंतर्राष्ट्रीय व्यापार का लगभग 98% संभालती है। आईसीईएस के दो पहलू हैं:
संपादकीयः नकदी पर नकेल
नोटबंदी के बाद स्थिति कुछ सामान्य होने लगी, तो अब बैंकों ने नकदी निकासी पर लगाम कसने का उपाय निकाला है।
नोटबंदी के बाद स्थिति कुछ सामान्य होने लगी, तो भारतीय व्यापारियों के लिए जमा और निकासी अब बैंकों ने नकदी निकासी पर लगाम कसने का उपाय निकाला है। म
नोटबंदी के बाद स्थिति कुछ सामान्य होने लगी, तो अब बैंकों ने नकदी निकासी पर लगाम कसने का उपाय निकाला है। महीने में चार बार से अधिक नकदी लेन-देन पर बैंकों ने अपने-अपने ढंग से शुल्क वसूलना शुरू कर दिया है। माना जा रहा है कि इससे लोगों को नकदी रहित लेन-देन के लिए प्रोत्साहित किया जा सकता है। बैंकों के इस फैसले का स्वाभाविक ही अखिल भारतीय व्यापारी संघ ने विरोध किया है। उनकी मांग है कि अगर सरकार बैंकों से नकदी निकालने पर नियंत्रण रखना भारतीय व्यापारियों के लिए जमा और निकासी चाहती है, तो उसे डिजिटल भुगतान पर लगने वाले शुल्क को समाप्त करना चाहिए। नोटबंदी के समय सरकार ने डिजिटल भुगतान को बढ़ावा दिया था। इसके लिए इनामी योजनाएं भी चलाई गर्इं। तमाम बैंकों और ऐप आधारित वित्तीय कंपनियों ने डिजिटल भुगतान की प्रक्रिया को आसान बनाने का प्रयास किया। नोटबंदी के दौरान जब बैंकों में नकदी की किल्लत थी, सरकार ने डिजिटल भुगतान को शुल्क मुक्त रखने का आदेश दिया था। पर बैंकों और कंपनियों ने फिर से वही प्रक्रिया शुरू कर दी। ऐसे में, जब लोगों को बैंकों से पैसे निकालने और नकदी-रहित भुगतान दोनों के भारतीय व्यापारियों के लिए जमा और निकासी लिए शुल्क देना पड़ रहा है, तो उनका रोष समझा जा सकता है।
डिजिटल लेन-देन को प्रोत्साहित करने के पीछे सरकार की मंशा है कि इससे काले धन पर अंकुश लगाने में मदद मिलेगी। नकदी का प्रवाह जितना कम होगा, काले धन की संभावना उतनी ही क्षीण होती जाएगी। मगर हकीकत यह है कि डिजिटल लेन-देन आम लोगों के लिए खासा पेचीदा काम है। रोजमर्रा की जरूरतों के लिए लोगों को नकदी पर निर्भर रहना ही पड़ता है। फिर व्यापारियों और छोटे कारोबारियों के लिए संभव नहीं है कि वे डिजिटल भुगतान पर निर्भर रह सकें। कारोबारियों को वैसे भी महीने में कई बार पैसे निकालने और जमा कराने की जरूरत पड़ती है, इसलिए नकदी निकासी की सीमा तय कर देने और उससे अधिक निकासी पर मनमाना शुल्क वसूले जाने से उन्हें अतिरिक्त बोझ उठाना पड़ रहा है। उधर डिजिटल भुगतान करने पर बैंक सेवा कर के रूप में अतिरिक्त रकम वसूलते हैं। नकदी-रहित लेन-देन को बढ़ावा देने के नाम पर बैंकों को दोहरी कमाई का मौका देना किसी रूप में उचित नहीं ठहराया जा सकता।
नोटबंदी के समय यह भी सवाल उठा था कि अगर किसी व्यक्ति ने आय कर चुकाने के बाद कोई रकम जमा की है, तो उसे पूरा अधिकार होना चाहिए कि उसे वह किस रूप में खर्च करे। उसे खर्च करने का तरीका बताने की कोशिश सरकार को क्यों भारतीय व्यापारियों के लिए जमा और निकासी करनी चाहिए या फिर बैंकों को उसके खर्च करने के तरीके को नियंत्रित करने का अधिकार क्यों होना चाहिए? अपना ही जमा पैसा अगर कोई व्यक्ति निकालना चाहता है तो उसे बगैर किसी ठोस तर्क के ऐसा करने से क्यों रोका जाना चाहिए? यह ठीक है कि बैंकों का कारोबार अपने ग्राहकों के जमा पैसे से ही चलता है, इसलिए हर खाते में न्यूनतम रकम रखने की शर्त रखी जाती है। फिर बैंक जो सेवाएं उपलब्ध कराते हैं, उनके बदले भी उन्हें शुल्क मिलना चाहिए, मगर ग्राहकों के लिए अपना पैसा निकालने की सीमा तय करके डिजिटल भुगतान को भारतीय व्यापारियों के लिए जमा और निकासी बढ़ावा देने की कोशिश उन पर ज्यादती ही कही जाएगी। तमाम अध्ययनों से जाहिर हो चुका है कि भारत जैसे देश में, जहां अधिसंख्य लोग तकनीकी संसाधनों के संचालन से अनभिज्ञ हैं, डिजिटल लेन-देन को अनिवार्य बनाना उचित नहीं है।
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भारतीय बैंकों में कितने प्रकार के खाते खोले जाते हैं?
भारत में आधुनिक बैंकिंग सेवाओं का इतिहास दो सौ वर्ष पुराना है। देश में विभिन्न आय वर्ग के लोगों, उनकी जरूरतों और अर्थव्यवस्था की जरूरतों के हिसाब से विभिन्न प्रकार के बैंक खातों का विकास हुआ है, जैसे चालू खाता बड़े व्यापारी या संस्थान खुलवाते हैं जबकि बचत खाता मध्य आय वर्ग के लोग खुलवाते हैं l इस लेख में हम बचत खातों, चालू खातों और सावधि जमा खातों के बारे में पढेंगेl
भारत में आधुनिक बैंकिंग सेवाओं का इतिहास दो सौ वर्ष पुराना है। देश में विभिन्न आय वर्ग के लोगों, उनकी जरूरतों और अर्थव्यवस्था की जरूरतों के हिसाब से विभिन्न प्रकार के बैंक खातों का विकास हुआ है, जैसे चालू खाता बड़े व्यापारी या संस्थान खुलवाते हैं जबकि बचत खाता, मध्य आय वर्ग के लोग खुलवाते हैं l इस लेख में हम बचत खातों, चालू खातों और सावधि जमा खातों के बारे में पढेंगेl
बैंक खातों के प्रकार निम्न हैं:-
1. बचत खाता
2. चालू खाता
3. सावधि जमा खाता
4. आवर्ती जमा खाता
5. नो-फ़्रिल अकाउंट या बुनियादी बचत खाता
आइये अब इन खातों के बारे में एक-एक करके विस्तार से जानते हैं कि कौन सा खाता किन लोगों के द्वारा खुलवाया जाता है l
1. बचत बैंक खाता (Savings Bank Account)
इस प्रकार का खाता किसी भी सरकारी या निजी बैंक में न्यूनतम रुपये जमा करके खुलाया जा सकता हैl यह न्यूनतम जमा राशि हर बैंक में अलग अलग होती है लेकिन ज्यादातर सरकारी बैंकों में यह राशि 1000 रुपये होती हैl इस प्रकार के खाते में धन किसी भी समय जमा किया या निकाला जा सकता है। इस प्रकार के खातों से रुपये निकालने के लिए खाता धारक बैंक में निकासी फॉर्म (withdrawal from), चेक जारी करके या एटीएम कार्ड का उपयोग करके निकाल सकता हैl
हाल ही में बैंकों में भीड़ को रोकने के लिए कुछ बैंकों जैसे स्टेट बैंक ऑफ़ इंडिया, एक्सिस बैंक आदि ने इस प्रकार के खाते से पैसा निकालने के नये नियम बना दिए हैंl बचत खाता में जमा राशि पर बैंकों द्वारा ब्याज भी दिया जाता है हालांकि यह ब्याज दर हर बैंक में अलग अलग होती है और समय-समय पर बदलती भी रहती हैl बैंक के नियमों के अनुसार खाता धारक द्वारा बचत खाते में एक न्यूनतम शेष राशि (minimum balance) को बनाए रखा जाना चाहिए। बैंक इस प्रकार के खातों में जमा पर ब्याज प्रतिदिन की शेष राशि पर देता है l
2. चालू जमा खाता (Current Deposit Account)
बड़े व्यवसायी, कंपनियों और संस्थान जैसे स्कूल, कॉलेज, और अस्पतालों को अपने बैंक खातों के माध्यम से भुगतान करना पड़ता है चूंकि बचत खाते के माध्यम से आप अनगिनत जमा या निकासी नही कर सकते इसलिए ऐसे बड़े खाता धारकों के लिए चालू जमा खाता खुलवाना अनिवार्य होता है, क्योंकि इस प्रकार के लोगों को दिन में कई बार पैसे की जरुरत पड़ती है इसलिए ये लोग इस प्रकार के खाते को खुलवाना पसंद करते हैंl चालू जमा खाता पर बैंक, खाता धारक को उसकी जमा राशि पर ब्याज नही देता है बल्कि प्रत्येक साल खाता धारक ही बैंक को एक निश्चित राशि का भुगतान बैंक को करता हैl ग्राहकों की सुविधा के लिए बैंक खाता धारकों को उनकी जमा राशि से अधिक की निकासी की सुविधा भी देता है इसको ओवरड्राफ्ट सुविधा (overdraft facility) के रूप में जाना जाता है।
3. सावधि जमा खाता या मियादी जमा खाता (Fixed Deposit Account or Term Deposit Account)
जिन लोगों के पास प्रचुर मात्रा में धन होता है लेकिन वे लोग शेयर बाजार के रिस्क को झेलना नही चाहते हैं और यदि ऐसे लोग लम्बी अवधि के लिए धन बचाना चाहते हैं तो वे सावधि जमा खाता या मियादी जमा खाता खुलवा लेते हैं l अब आप यहाँ पर यह सोच सकते हैं कि लोग बचत खाता में भी तो पैसे जमा करा सकते हैं फिर सावधि जमा खाता क्यों खुलवाते हैं ? इसका कारण यह है कि बचत खाता पर बैंक बहुत ही कम ब्याज देता है जैसे 3% से 5% वार्षिक परन्तु सावधि जमा खाता में 8% से 10% का ब्याज मिलता है l सावधि जमा खाता की विशेषता यह होती है कि इसमें धन एक निश्चित समय के लिए जमा हो जाता है जैसे 1 साल से लेकर 10 साल तकl यदि कोई खाता धारक किसी खास जरुरत के समय अपने इस सावधि जमा खाता में जमा राशि को निकालना चाहता है तो बैंक उस पर कुछ पेनाल्टी लगाकर उसका शेष धन वापस कर देता है l
4. आवर्ती जमा खाता (Recurring Deposit Account)
इस प्रकार का खाता उन लोगों के लिए उपयुक्त है जो नियमित रूप से बचत कर सकते हैं और एक निश्चित समय में जमा राशि पर उचित रिटर्न अर्जित करने की उम्मीद करते हैं। इस प्रकार का खाता खोलते समय एक व्यक्ति को निश्चित अवधि के लिए (जैसे 1 साल या 5 साल तक) महीने में एक बार एक निश्चित राशि जमा भारतीय व्यापारियों के लिए जमा और निकासी करनी पड़ती है। इसमें जमाकर्ता को अवधि पूरी होने के बाद पूरी जमा राशि पर ब्याज सहित मूल राशि लौटा दी जाती हैl जमाकर्ता अपने खाते को परिपक्वता से ही पहले बंद कर सकता है और जिस अवधि तक के लिए धन जमा था, पर ब्याज का भुगतान कर दिया जाता हैl इस प्रकार के खातों में जमा राशि पर ब्याज की दर बचत जमा से अधिक, लेकिन सावधि जमा की दर से कम होती है।
5. बुनियादी बचत खाता (Basic Saving Accounts ): इन खातों को '' नो फ्रिल खाता 'भी कहा जाता था l इस प्रकार के खातों की शुरुआत रिज़र्व बैंक ने 2005 में समाज के वंचित और गरीब लोगों को बैंकिंग सुविधा देने के लिए शुरू की थी l इस प्रकार के खातों को बिना रुपये जमा किये (zero balance) खुलवाया जाता था और खाता धारक को न्यूनतम बैलेंस बनाये रखने की बाध्यता से भी भारतीय व्यापारियों के लिए जमा और निकासी छूट दी गयी थीl सन 2012 में भारतीय रिज़र्व बैंक ने 'नो फ्रिल खातों' को बुनियादी बचत खातों (BSBDA-Basic Savings Bank Deposit Account) में बदलने के निर्देश दिए थेl BSBDA दिशानिर्देश "भारत में सभी अनुसूचित वाणिज्यिक बैंकों, और जिन विदेशी बैंकों की शाखाएं भारत में हैं सभी पर लागू होते हैंl इन बुनियादी बचत खातों धारकों पर खाता के ना चलाने पर या बैंक किसी भी तरह का शुल्क नही लगा सकता हैl बुनियादी बचत खाता धारकों को एक माह में अधिकतम चार निकासी की अनुमति दी जाएगी, जिसमें एटीएम के माध्यम से हुई निकासी भी शामिल है।
इस प्रकार यह कहा जा सकता है कि भारत में बैंकिंग व्यवस्था को बहुत ही व्यवस्थित तरीके से बनाया गया है ताकि समाज के सभी वर्गों अमीर, गरीब, मध्यवर्ग और संस्थानों आदि के हितों की रक्षा की जा सके l
संपादकीयः नकदी पर नकेल
नोटबंदी के बाद स्थिति कुछ सामान्य होने लगी, तो भारतीय व्यापारियों के लिए जमा और निकासी अब बैंकों ने नकदी निकासी पर लगाम कसने का उपाय निकाला है।
नोटबंदी के बाद स्थिति कुछ सामान्य होने लगी, तो अब बैंकों ने नकदी निकासी पर लगाम कसने का उपाय निकाला है। म
नोटबंदी के बाद स्थिति कुछ सामान्य होने लगी, तो अब बैंकों ने नकदी निकासी पर लगाम कसने का उपाय निकाला है। महीने में चार बार से अधिक नकदी लेन-देन पर बैंकों ने अपने-अपने ढंग से शुल्क वसूलना शुरू कर दिया है। माना जा रहा है कि इससे लोगों को नकदी रहित लेन-देन के लिए प्रोत्साहित किया जा सकता है। बैंकों के इस फैसले का स्वाभाविक ही अखिल भारतीय व्यापारी संघ ने विरोध किया है। उनकी मांग है कि अगर सरकार बैंकों से नकदी निकालने पर नियंत्रण रखना चाहती है, तो उसे डिजिटल भुगतान पर लगने वाले शुल्क को समाप्त करना चाहिए। नोटबंदी के समय सरकार ने डिजिटल भुगतान को बढ़ावा दिया था। इसके लिए इनामी योजनाएं भी चलाई गर्इं। तमाम बैंकों और ऐप आधारित वित्तीय कंपनियों ने डिजिटल भुगतान की प्रक्रिया को आसान बनाने का प्रयास किया। नोटबंदी के दौरान जब बैंकों में नकदी की किल्लत थी, सरकार ने डिजिटल भुगतान को शुल्क मुक्त रखने का आदेश दिया था। पर बैंकों और कंपनियों ने फिर से वही प्रक्रिया शुरू कर दी। ऐसे में, जब लोगों को बैंकों से पैसे निकालने और नकदी-रहित भुगतान दोनों के लिए शुल्क देना पड़ रहा है, तो उनका रोष समझा जा सकता है।
डिजिटल लेन-देन को प्रोत्साहित करने के पीछे सरकार की मंशा है कि इससे काले धन पर अंकुश लगाने में मदद मिलेगी। नकदी का प्रवाह जितना कम होगा, काले धन की संभावना उतनी ही क्षीण होती जाएगी। मगर हकीकत यह है कि डिजिटल लेन-देन आम लोगों के लिए खासा पेचीदा काम है। रोजमर्रा की जरूरतों के लिए लोगों को नकदी पर निर्भर रहना ही पड़ता है। फिर व्यापारियों भारतीय व्यापारियों के लिए जमा और निकासी और छोटे कारोबारियों के लिए संभव नहीं है कि वे डिजिटल भुगतान पर निर्भर रह सकें। कारोबारियों को वैसे भी महीने में कई बार पैसे निकालने और जमा कराने की जरूरत पड़ती है, इसलिए नकदी निकासी की सीमा तय कर देने और उससे अधिक निकासी पर मनमाना शुल्क वसूले जाने से उन्हें अतिरिक्त बोझ उठाना पड़ रहा है। उधर डिजिटल भुगतान करने पर बैंक सेवा कर के रूप में अतिरिक्त रकम वसूलते हैं। नकदी-रहित लेन-देन को बढ़ावा देने के नाम पर बैंकों को दोहरी कमाई का मौका देना किसी रूप में उचित नहीं ठहराया जा सकता।
नोटबंदी के समय यह भी सवाल उठा था कि अगर किसी व्यक्ति ने आय कर चुकाने के बाद कोई रकम जमा की है, तो उसे पूरा अधिकार होना चाहिए कि उसे वह किस रूप में खर्च करे। उसे खर्च करने का तरीका बताने की कोशिश सरकार को क्यों करनी चाहिए या फिर बैंकों को उसके खर्च करने के तरीके को नियंत्रित करने का अधिकार क्यों होना चाहिए? अपना ही जमा पैसा अगर कोई व्यक्ति निकालना चाहता है तो उसे बगैर किसी ठोस तर्क के ऐसा करने से क्यों रोका जाना चाहिए? यह ठीक है कि बैंकों का कारोबार अपने ग्राहकों के जमा पैसे से ही चलता है, इसलिए हर खाते में न्यूनतम रकम रखने की शर्त रखी जाती है। फिर बैंक जो सेवाएं उपलब्ध कराते हैं, उनके बदले भी उन्हें शुल्क मिलना चाहिए, मगर ग्राहकों के लिए अपना पैसा निकालने की सीमा तय करके डिजिटल भुगतान को बढ़ावा देने की कोशिश उन पर ज्यादती ही कही जाएगी। तमाम अध्ययनों से जाहिर हो चुका है कि भारत जैसे देश में, जहां अधिसंख्य लोग तकनीकी संसाधनों के संचालन से अनभिज्ञ हैं, डिजिटल लेन-देन को अनिवार्य बनाना उचित नहीं है।
PAK vs ENG: देश का हर शख्स पाकिस्तान क्रिकेट बोर्ड को 1-1 चिट्ठी लिखे, इंग्लैंड के 500 रन बनने पर बोले शोएब अख्तर
Gujarat Election: गुजरात के लोगों ने आज बहुत बड़ा कमाल कर दिया – अरविंद केजरीवाल ने किया यह ट्वीट, यूजर्स ने किए ऐसे कमेंट्स
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