थम नहीं रही विदेशी मुद्रा भंडार की गिरावट

अर्थव्यवस्था के हित में नहीं है सोने का घरों में संग्रह, प्रमोद भार्गव का ब्लॉग
बीते पांच दशकों में सोने में 14 प्रतिशत वार्षिक वृद्धि दर्ज की गई है. बीते एक साल में यह वृद्धि 40 प्रतिशत रही है. कुछ साल पहले रिजर्व बैंक द्वारा सोने में आयात के नियमों में ढील देने के कारण सोने का आयात बढ़ा है, जो विदेशी मुद्रा डॉलर में होता है. सोने की तस्करी भी बड़ी मात्ना में हो रही है.
सोना सस्ता होता है, इसकी खरीद बढ़ जाती है, जिसका अप्रत्यक्ष प्रभाव देश की अर्थव्यवस्था पर पड़ता है.
Highlights दुनिया में रफ्तार के पहिए थम जाने के कारण ऐसा लग रहा है कि इन धातुओं के दामों में फिलहाल गिरावट आने वाली नहीं है. सोना भारतीय परंपरा में धार्मिक, सामाजिक और आर्थिक दृष्टियों से बेहद महत्वपूर्ण माना जाता है. जीवन में बुरे दिन आ जाने की आशंकाओं के चलते भी सोना सुरक्षित रखने की प्रवृत्ति आम आदमी में खूब है.
भारत समेत पूरी दुनिया में कोविड-19 महामारी के चलते अर्थव्यवस्था जबरदस्त मंदी का सामना कर रही है. बाजार में धन की तरलता कम हो जाने के कारण अधिकतर देशों की माली हालत लड़खड़ा गई है और बेरोजगारी बढ़ रही है.
इसके बावजूद व्यक्तिगत स्तर पर सोने की खरीद में तेजी आई हुई है. इस खरीद की पृष्ठभूमि में बैंक में जमा धनराशि की ब्याज दरों में कमी, जमीन-जायदाद और शेयर बाजार का कारोबार लगभग ठप पड़ जाना है. इसलिए लोग ठोस सोने-चांदी की खरीद कर संग्रह में लगे हैं.
सोने में पूंजी का निवेश सबसे सुरक्षित माना जाता है. इसीलिए बीते पांच दशकों में सोने में 14 प्रतिशत वार्षिक वृद्धि दर्ज की गई है. बीते एक साल में यह वृद्धि 40 प्रतिशत रही है. कुछ साल पहले रिजर्व बैंक द्वारा सोने में आयात के नियमों में ढील देने के कारण सोने का आयात बढ़ा है, जो विदेशी मुद्रा डॉलर में होता है. सोने की तस्करी भी बड़ी मात्ना में हो रही है.
कोविड-19 काल में सोने में बहुत तेजी देखने में आई है
कोविड-19 काल में सोने में बहुत तेजी देखने में आई है. दुनिया में रफ्तार के पहिए थम जाने के कारण ऐसा लग रहा है कि इन धातुओं के दामों में फिलहाल गिरावट आने वाली नहीं है. सोना भारतीय परंपरा में धार्मिक, सामाजिक और आर्थिक दृष्टियों से बेहद महत्वपूर्ण माना जाता है.
पूजा-पाठ से लेकर शादी में वर-वधू को सोने के गहने देना प्रतिष्ठा और सम्मान का प्रतीक है. जीवन में बुरे दिन आ जाने की आशंकाओं के चलते भी सोना सुरक्षित रखने की प्रवृत्ति आम आदमी में खूब है. इसलिए जैसे ही सोना सस्ता होता है, इसकी खरीद बढ़ जाती है, जिसका अप्रत्यक्ष प्रभाव देश की अर्थव्यवस्था पर पड़ता है.
सोना डॉलर में आयात किया जाता है. इस वजह से व्यापार घाटा खतरनाक तरीके से बढ़ जाता है और रुपए की कीमत भी गिरने लगती है. 2003 में जहां हम 3.8 अरब डॉलर के सोने का आयात करते थे, वहीं देश के धनी लोगों की स्वर्ण-लिप्सा के चलते 2011-12 में यह आंकड़ा 57.5 अरब डॉलर तक पहुंच गया.
भारत सोने के आयात के मामले में दुनिया में दूसरे स्थान पर है
भारत सोने के आयात के मामले में दुनिया में दूसरे स्थान पर है. 2016-17 में 771.2 टन और 2018-19 में 760.4 टन सोने का आयात किया गया. राजस्व गुप्तचर निदेशालय यानी डीआरआई की 2019 में आई रिपोर्ट के मुताबिक देश में सोने की तस्करी लगातार बढ़ रही है.
2017-18 में कुल 974 करोड़ रुपए का सोना पकड़ा गया. डीआरआई का मानना है कि तस्करी के जरिए जितना सोना भारत में आता है, उसका मात्न 5 से 10 प्रतिशत ही सोना पकड़ में आ पाता है. इस हिसाब से डीआरआई का मानना है कि 10 हजार करोड़ रुपए का सोना देश में तस्करी के जरिये आया है.
विश्व स्वर्ण परिषद का मानना है कि सोने पर 2.5 प्रतिशत कर बढ़ा दिए जाने के कारण तस्करी में वृद्धि हुई है. सोने की वैध खरीद पर कुल 12.5 प्रतिशत कर लगता है. सोना और इसके आभूषणों पर 3 प्रतिशत जीएसटी लगती है. इसके अलावा सोने के व्यापारी और स्वर्णकार इस पर दो प्रतिशत अलग से शुल्क लेते हैं.
कुल मिलाकर अंतरराष्ट्रीय बाजार से सोने के भाव में अंतर 15.5 प्रतिशत तक होता है. इस कारण तस्करी को बढ़ावा मिल रहा थम नहीं रही विदेशी मुद्रा भंडार की गिरावट है. तत्कालीन वित्त मंत्नी अरुण जेटली ने एक समग्र स्वर्ण नीति बनाने की घोषणा की थी, लेकिन उनकी मृत्यु के बाद इस पर अमल नहीं हुआ.
देश के स्वर्ण आभूषण विक्रेताओं, घरों, मंदिरों और भारतीय रिजर्व बैंक में जमा
बृहत्तर भारत में सोने का भंडार लगातार बढ़ रहा है. यह सोना देश के स्वर्ण आभूषण विक्रेताओं, घरों, मंदिरों और भारतीय रिजर्व बैंक में जमा है. 2014-15 में ही 850 टन सोना आयात किया गया था. इतनी बड़ी मात्ना के बावजूद विश्व स्वर्ण परिषद का मानना है कि भारत के सरकारी खजाने में सिर्फ 557.7 टन सोना है.
सोने के सरकारी भंडार के मामले में भारत 11वें स्थान पर है. इसके इतर इसी परिषद का अनुमान है कि भारत में 22 हजार टन सोना घरों, मंदिरों और धार्मिक स्थलों एवं पूंजीपतियों के न्यासों के पास है. रिजर्व बैंक अधिनियम 1934 के अनुच्छेद 33 (5) के अनुसार रिजर्व बैंक के स्वर्ण भंडार का 85 प्रतिशत भाग बैंक के पास सुरक्षित रखना जरूरी है.
यह सोने के सिक्कों, बिस्किट्स, ईंटों अथवा शुद्ध सोने के रूप में रिजर्व बैंक या उसकी एजेंसियों के पास आस्तियों अथवा परिसंपत्तियों के रूप में रखा होना चाहिए. इस अधिनियम से सुनिश्चित होता है कि ज्यादा से ज्यादा 15 फीसदी स्वर्ण भंडार ही देश के बाहर गिरवी रखा अथवा बेचा जा सकता है.
जबकि 1991 में इंग्लैंड में जो 65.27 टन सोना गिरवी रखा गया था, वह रिजर्व बैंक में उपलब्ध कुल सोने का 18.24 प्रतिशत था, जो रिजर्व बैंक की कानूनी-शर्तो के मुताबिक ही 3.24 फीसदी ज्यादा था. रिजर्व बैंक में जो सोना सुरक्षित होता है, उसका एक प्रतिशत से भी कम रिटर्न हासिल होता है.
भारत में मंदी से परेशान हुए लोग, जानिए कब कब भारत ने झेली थी मंदी कि मार
आज पूरी दुनिया भर में कोरोनावायरस महामारी फैल रही है। यह महामारी पूरी दुनिया भर में आर्थिक मंदी भी लेकर आई है। पूरी दुनिया आज के समय में कठिनाइयों से जूझ रही है। वहीं भारत में भी अब मंदी है। कोरोनावायरस ने देश को मुश्किलों में डाल दिया है। सिर्फ भारत ही नहीं बल्कि पूरी दुनिया इस मंदी से जूझ रही है। हालांकि अब अर्थव्यवस्था को नए सिरे से शुरू करने की पहल होने लगी है। देश की मोदी सरकार भी लगातार यही कोशिश कर रही है कि देश की अर्थव्यवस्था को दोबारा से पटरी पर लाया जा सके।
इस समय भारत में लोगों की परचेसिंग पावर घट रही है। जिसके चलते उद्योग का पहिया थम रहा है। कंपनियों ने लागत घटाने के लिए छटनी भी कि है। कई लाखों करोड़ों लोगों की जॉब इस घातक वायरस की वजह से गई है। या उनकी जॉब पर बड़ा असर पड़ा है। आर्थिक ग्रोथ तिमाही दर तिमाही सुस्त बढ़ती जा रही है। वही देश का ऑटो सेक्टर रिवर्स गियर में जा चुका है। ऑटो इंडस्ट्री में लगातार गिरावट देखी जा रही है। आइए जानते हैं कि इससे पहले भारत पर मंदी की आंच कब-कब पड़ी है।
आजादी के बाद जब देश ने झेली मंदी
वही आपको बता देंगे आजादी के बाद से भारत को प्रमुख रूप से दो बार आर्थिक मंदी से झटका लगा है। यह साल थे साल 1991 और 2008। साल 1991 में आई आर्थिक मंदी के पीछे आंतरिक कारण थे। लेकिन 2008 में वैश्विक मंदी के चलते भारत की अर्थव्यस्था पर आंच आई थी। 1991 में भारत के आर्थिक संकट में फंसने की सबसे बड़ी वजह भुगतान संकट था। इस दौरान आयात में भारी कमी आई थी, जिससे देश दोतरफा घाटे में था।
विदेशी मुद्रा भंडार घटने से रुपये में तेज गिरावट आई जिससे घाटे का संकट बढ़ गया। पूर्व प्रधानंत्री चंद्रशेखर की सरकार फरवरी 1991 बजट पेश नहीं कर सकी। इसी दौरान अंतर्राष्ट्रीय क्रेडिट रेटिंग एजेंसी मूडीज ने भारत को डाउनग्रेड कर दिया था। कई वैश्विक क्रेडिट-रेटिंग एजेंसियों ने भी भारत को डाउनग्रेड कर दिया। विश्व बैंक और आईएमएफ ने भी अपनी सहायता रोक दी, जिससे सरकार को भुगतान पर चूक से बचने के लिए देश के सोने को गिरवी रखने के अलावा कोई विकल्प नहीं बचा था।
देश का व्यापार संतुलन गड़बड़ा चुका था। सरकार बड़े राजकोषीय घाटे पर चल रही थी। खाड़ी युद्ध में 1990 के अंत तक, स्थिति इतनी गंभीर हो गई थी कि भारतीय विदेशी मुद्रा भंडार मुश्किल से तीन सप्ताह के आयात लायक बचा था। सरकार कर्ज चुकाने में असमर्थ हो रही थी।
1991 में आए आर्थिक संकट की मुख्य वजह
1991 में आए आर्थिक संकट की मुख्य वजह रुपये की कीमत तेजी से घटना, देश का बढ़ता चालू खाता घाटा, निवेशकों का भारत के प्रति घटता भरोसा और रुपये की विनिमय दर में कमी थी। 1980 के दशक के अंत तक, भारत गंभीर आर्थिक संकट में था।
2008 में आई आर्थिक मंदी का भारत की अर्थव्यवस्था पर असर
2008 में आई आर्थिक मंदी से भारत की अर्थव्यस्था को उतना नुकसान नही झेलना पड़ा था जितना अन्य देशों के अर्थव्यवस्थाओ को झेलना पड़ा था। 2008 की मंदी के दौरान भारत का व्यापार वैश्विक जगत के साथ व्यापार काफी घट गया था। आर्थिक ग्रोथ घटकर 6 फीसदी से नीचे चली गई थी।
Stock Market: इस हफ्ते शेयर्स में होता रहा उतार-चढ़ाव, निवेशकों को हुआ मुनाफा
शेयर बाजार में इस हफ्ते उछाल हुआ है। सेंसेक्स में 212 अंक थम नहीं रही विदेशी मुद्रा भंडार की गिरावट की बढ़त हुई है।
by Anzar Hashmi
Stock Market: सप्ताह के अंत में कल Nifty 1.19% की बढ़त के साथ 17,786.80 पर बंद हुआ, जबकि Sensex 1.10% की बढ़त करने के बाद 59,959.85 पर बंद हुआ। वहीं लगातार बाजार में उतार चढ़ाव देखने को मिल रहा है।
इसके अलावा, RBI जानकारी दिया है कि 14 अक्टूबर को समाप्त सप्ताह में भारत का विदेशी मुद्रा भंडार 4.50 अरब डॉलर गिरने के बाद 528.37 अरब डॉलर हो गया। इस चीज ने ट्रेडर्स के सेंटीमेंट को प्रभावित करना शुरू किया है।
गुरुवार को मेटल, रियल एस्टेट और यूटिलिटी शेयरों में खरीदारी की वजह से भारतीय इक्विटी में रौनक देखी गई। उधर S&P ग्लोबल मार्केट इंटेलिजेंस की भविष्यवाणी है कि एशिया-प्रशांत क्षेत्र, जो दुनिया के GDP का 35 फीसद का हिस्सेदार है, 2023 में वैश्विक आर्थिक विकास का नेतृत्व करेगा, जिसकी वजह से मार्केट में ट्रेडर्स का विश्वास बढ़ा। ऐसा इसलिए है क्योंकि रीजनल फ्री-ट्रेड एग्रीमेंट, एफिशिएंट सप्लाई चेन और कम कीमतें एशिया-प्रशांत क्षेत्र को ऐसा करने में मदद करेंगी।
शुक्रवार को भारतीय इक्विटी बाजार का ग्राफ Maruti Suzuki, Reliance Industries और NTPC में खरीदारी की वजह से ग्रीन हो गया था। इसके अलावा विदेशी निवेशकों की खरीदारी की वजह से बाजार की शुरुआत अच्छी रही और दिन के अधिकांश समय हरे निशान में पहुंच चुके हैं।
इन शेयर्स में हुई उछाल
जेएसडब्ल्यू स्टील, हिंडाल्को इंडस्ट्रीज, टाटा स्टील, अदानी पोर्ट्स और पावर ग्रिड कॉर्पोरेशन निफ्टी में शीर्ष पर बना हुआ था। जबकि बजाज फाइनेंस, बजाज फिनसर्व, एशियन पेंट्स, बजाज ऑटो और नेस्ले इंडिया के शेयरों में आज गिरावट देखने को मिली है ।
अमेरिकी डॉलर के मुकाबले रुपया गुरुवार को 34 पैसे की तेजी करने के बाद 82.47 (अनंतिम) पर बंद हो गया था, क्योंकि ग्रीनबैक अपने ऊंचे स्तर से कमजोर हो गया है। इंटरबैंक विदेशी मुद्रा बाजार में रुपया 82.15 पर खुला और इसने 82.14 का उच्च और 82.51 का निचले स्तर पर पहुंच चुका है। यह अंत में अमेरिकी मुद्रा के मुकाबले 82.47 पर बंद हुआ, जो पिछले बंद के मुकाबले 34 पैसे की बढ़ोतरी हुई है।
बर्ड ग्रुप के कार्यकारी निदेशक अंकुर भाटिया की दिल का दौरा पड़ने से मौत
राज एक्सप्रेस। आज देशभर में कोरोना का आंकड़ा बेकाबू हो थम नहीं रही विदेशी मुद्रा भंडार की गिरावट चुका है। देश में पहले ही इतने लोगों की जान कोरोना के चलते जा रही है। कोरोना की चपेट में आकर अब तक कई दिग्गज नेता, अभिनेता सहित अन्य कई बड़ी हस्तियों की मौत हो चुकी है। ऐसे में अन्य कारणों से भी लोगों की मौत की खबरें नहीं थम रही हैं। वहीं, अब देश में कोरोना से हो रही मौतों के बीच ही बर्ड ग्रुप के कार्यकारी थम नहीं रही विदेशी मुद्रा भंडार की गिरावट निदेशक अंकुर भाटिया की हृदय गति रुकने (Heart Attack) से निधन होने की खबर सामने आई है।
अंकुर भाटिया का निधन :
दरअसल, देश में इतने लोगों की मौत के बाद शुक्रवार देर रात बर्ड समूह के कार्यकारी निदेशक अंकुर भाटिया की मृत्यु हो गई। उन्हें 48 साल की उम्र में कल रात अचानक दिल का दौरा पड़ा। जिससे उनका निधन हो गया। बता दें, उनकी मृत्यु से उनके परिवार में शोक का माहौल है। खबरों की मानें तो, अंकुर भाटिया को साल 1994 में एमेडियस ब्रांड को भारतीय उपमहाद्वीप लाने के लिए भी जाना जाता है, जिसका मुख्य काम आज ट्रैवल एजेंटों और एयरलाइंस के लिए ट्रैवेल टेक्नोलॉजी प्रदान करता है।
बर्ड समूह ने दी जानकारी :
बर्ड समूह एक ऐसा समूह है जो विभन्न प्रकार के कारोबार करता है। बर्ड समूह का व्यपार होटल के क्षेत्र, यात्रा प्रौद्योगिकी सहित अन्य कई क्षेत्रों में फैला हुआ है। ऐसे में कंपनी के कार्यकारी निदेशक की मृत्यु होना कंपनी के लिए किसी बड़े नुकसान से कम नहीं है। बर्ड समूह ने अपने इस दुःख को व्यक्त करते हुए अंकुर भाटिया के निधन की जानकारी दी। बर्ड समूह ने कहा, ‘‘बहुत दुख के साथ हम आपको यह सूचित कर रहे हैं कि बर्ड समूह के कार्यकारी निदेशक डा. अंकुर भाटिया (48 वर्ष) का आज प्रात: दिल का दौरा पड़ने से निधन हो गया।’’
अंकुर भाटिया को दिया जाता है श्रेय :
बताते चलें, अंकुर भाटिया को प्रतिष्ठित यूनिवर्सिटी ऑफ लंदन के किंग्स कॉलेज के पूर्व छात्र होने के साथ ही बैक-एंड एयरलाइन संचालन और इन्वेंट्री नियंत्रण के प्रबंधन के लिए एक आईटी सक्षम सॉफ्टवेयर विकसित करने और सेवा समर्थन कंपनी रिजर्वेशन डाटा मेटेनेंस (भारत) का संचालन करने का श्रेय भी दिया जाता है।
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