विदेशी विनिमय बाजार

खुदरा विदेशी मुद्रा बाजार में बोली

खुदरा विदेशी मुद्रा बाजार में बोली

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विदेशी मुद्रा व्यापार सीखें - 2022 व्यापार करना सीखें। सर्वश्रेष्ठ ब्रोकर खोजें।
आज ही फॉरेक्स मार्केट पर ट्रेडिंग शुरू करने के लिए आपको जो कुछ जानने की जरूरत है, उसे जानें!

इस ऐप में मैं आपको दिखाऊंगा कि कैसे आप मुनाफा खुदरा विदेशी मुद्रा बाजार में बोली कमाने के लिए करेंसी मूवमेंट का फायदा उठा सकते हैं। हम मुद्राओं, चार्ट, बैल और भालू, लघु बिक्री के बारे में विस्तार से बात करेंगे,

आर्थिक घटनाओं के कैलेंडर को पढ़ना सीखें, जो विदेशी मुद्रा पर मौलिक व्यापार के साथ-साथ अन्य वित्तीय बाजारों जैसे NYSE, लंदन स्टॉक एक्सचेंज, फ्यूचर्स एक्सचेंज, और बहुत कुछ के लिए अनिवार्य है।

मैं पूरी तरह से समझाऊंगा कि विदेशी मुद्रा दलाल कैसे काम करते हैं, ताकि जब आप एक वास्तविक ट्रेडिंग खाता खोलने के लिए तैयार हों तो आप अविश्वसनीय दलालों से ईमानदार दलालों को आसानी से अलग कर सकें। मैं रियल ट्रेडिंग के अपने अनुभव के आधार पर एक विदेशी मुद्रा दलाल का चयन करने के लिए एक मुफ़्त गाइड भी शामिल करता हूँ।

मैं आपको आपके समय क्षेत्र के लिए एक विदेशी मुद्रा बाजार घंटे वॉलपेपर भी प्रदान करूंगा, जिससे आप पूरे दिन वैश्विक विदेशी मुद्रा बाजार सहभागियों की गतिविधि की आसानी से निगरानी कर सकते हैं।

यह ऐप पूर्ण शुरुआती और अग्रिम के लिए है! आपको बस एक खुले दिमाग और सफल होने के लिए जुनून की जरूरत है!

विदेशी मुद्रा क्या है?

विदेशी मुद्रा, जिसे विदेशी मुद्रा, एफएक्स या मुद्रा व्यापार के रूप में भी जाना जाता है, एक विकेन्द्रीकृत वैश्विक बाजार है जहां दुनिया की सभी मुद्राएं व्यापार करती हैं। विदेशी मुद्रा बाजार दुनिया का सबसे बड़ा, सबसे अधिक तरल बाजार है, जिसकी औसत दैनिक ट्रेडिंग मात्रा $ 5 ट्रिलियन से अधिक है। दुनिया के सभी संयुक्त शेयर बाजार इसके करीब भी नहीं आते हैं। लेकिन आपके लिए इसका क्या मतलब है? विदेशी मुद्रा व्यापार पर करीब से नज़र डालें और आपको कुछ रोमांचक व्यापारिक अवसर मिल सकते हैं जो अन्य निवेशों के साथ उपलब्ध नहीं हैं।

विदेशी मुद्रा व्यापार क्यों सीखें: विदेशी मुद्रा व्यापार के लाभ

शुरुआती के लिए विदेशी मुद्रा व्यापार के कई लाभ और लाभ हैं। यहां कुछ कारण दिए गए हैं कि इतने सारे लोग विदेशी मुद्रा व्यापार क्यों चुन रहे हैं:

कोई कमीशन नहीं विदेशी मुद्रा व्यापार

कोई समाशोधन शुल्क नहीं, कोई विनिमय शुल्क नहीं, कोई सरकारी शुल्क नहीं, कोई ब्रोकरेज शुल्क नहीं। अधिकांश खुदरा दलालों को उनकी सेवाओं के लिए "बोली/आस्क स्प्रेड" नामक किसी चीज़ के माध्यम से मुआवजा दिया जाता है।

विदेशी मुद्रा व्यापार में कोई बिचौलिया नहीं

स्पॉट खुदरा विदेशी मुद्रा बाजार में बोली मुद्रा व्यापार बिचौलियों को समाप्त करता है और आपको किसी विशेष मुद्रा जोड़ी पर मूल्य निर्धारण के लिए जिम्मेदार बाजार के साथ सीधे व्यापार करने की अनुमति देता है।

विदेशी मुद्रा व्यापार में कोई निश्चित लॉट आकार नहीं

स्पॉट फॉरेक्स में, आप अपना खुद का लॉट या खुदरा विदेशी मुद्रा बाजार में बोली पोजीशन आकार निर्धारित करते हैं। यह व्यापारियों को $25 जितनी छोटी राशि के खातों में भाग लेने की अनुमति देता है।

विदेशी मुद्रा व्यापार 24 घंटे का बाजार है

ओपनिंग बेल का कोई इंतजार नहीं है। ऑस्ट्रेलिया में सोमवार की सुबह खुलने से लेकर दोपहर तक न्यूयॉर्क में बंद होने तक, विदेशी मुद्रा बाजार कभी नहीं सोता है। यह उन लोगों के लिए बहुत बढ़िया है जो अंशकालिक आधार पर व्यापार करना चाहते हैं क्योंकि आप चुन सकते हैं कि आप कब व्यापार करना चाहते हैं: सुबह, दोपहर, रात, नाश्ते के दौरान, या अपनी नींद में।

विदेशी मुद्रा व्यापार में कोई भी बाजार को घेर नहीं सकता

विदेशी मुद्रा बाजार इतना विशाल है और इसमें इतने सारे प्रतिभागी हैं कि कोई भी एक इकाई विस्तारित अवधि के लिए बाजार मूल्य को नियंत्रित नहीं कर सकती है।

प्रवेश के लिए कम बाधाएं

आपको लगता है कि एक मुद्रा व्यापारी के रूप में शुरुआत करने में एक टन पैसा खर्च होगा। तथ्य यह है कि, ट्रेडिंग स्टॉक, विकल्प या वायदा की तुलना में, ऐसा नहीं होता है। ऑनलाइन विदेशी मुद्रा दलाल "मिनी" और "माइक्रो" ट्रेडिंग खातों की पेशकश करते हैं, कुछ में न्यूनतम खाता जमा $25 है।

इस ऐप में शामिल विषय

1- शुरुआती के लिए विदेशी मुद्रा व्यापार का परिचय
2- विदेशी मुद्रा बाजार की संरचना
3- विदेशी मुद्रा व्यापार में प्रमुख मुद्राएं और व्यापार प्रणाली
4- विदेशी मुद्रा व्यापार में बाजार विश्लेषण
5- विदेशी मुद्रा व्यापार में विदेशी मुद्रा बाजार का प्रकार
6- विदेशी मुद्रा व्यापार के लाभ
7- विदेशी मुद्रा व्यापार में मौलिक बाजार बल
8- विदेशी मुद्रा व्यापार में तकनीकी संकेतक
9- विदेशी मुद्रा व्यापार में रुझानों का पैटर्न अध्ययन
10- मूल्य पैटर्न में विदेशी मुद्रा व्यापार तकनीकी रणनीति
11- विदेशी मुद्रा व्यापार थरथरानवाला विचलन
12- विदेशी मुद्रा व्यापार में मुद्रास्फीति की भूमिका
13- विदेशी मुद्रा व्यापार में कमोडिटी कनेक्शन
14- विदेशी मुद्रा व्यापार में धन प्रबंधन की स्थिति
15- विदेशी मुद्रा व्यापार में विदेशी मुद्रा जोखिम

गिरती सेहत

फिलहाल तो रुपए के साथ कुछ भी ठीक होता नजर नहीं आ रहा है और विशेषज्ञों की आम सलाह यही है कि भारत को पहले के मुकाबले अपनी और ज्यादा कमजोर मुद्रा का अभ्यस्त होना ही होगा

रुपयाः फिलहाल कुछ भी ठीक होता नजर नहीं आ रहा

एम.जी. अरुण

  • नई दिल्ली,
  • 11 जुलाई 2022,
  • (अपडेटेड 11 जुलाई 2022, 3:51 PM IST)

कमजोर मुद्रा जरूरी नहीं कि कमजोर अर्थव्यवस्था की झलक हो, पर वह उसमें निहित उन मुद्दों की तरफ तो इशारा करती ही है जिन्हें दुरुस्त नहीं किया गया तो नुक्सान हो सकता है. इस लिहाज से फरवरी में यूक्रेन पर रूस के हमले के वक्त से ही रुपए में कोई गिरावट चिंता की बात है. रूसी फौजों के यूक्रेन में दाखिल होने के दिन यानी 24 फरवरी को रुपया प्रति डॉलर 75.4 के स्तर पर था, जो 5 जुलाई को अपने सबसे निचले स्तर 79.14 प्रति डॉलर पर आ गया. मैकलाई फाइनेंशियल सर्विस के सीईओ जमाल मैकलाई कहते हैं, ''रुपया जिस तरह गिर रहा है, उसे देखते हुए यह बेशक 80 प्रति डॉलर तक जाएगा.'' वे यह नहीं बता सकते कि कब, क्योंकि यह बाजार की शक्तियों और निश्चित ही युद्ध, महंगाई और कच्चे तेल के दामों पर निर्भर करता है.

रुपए के कमजोर होने की एक बड़ी वजह विभिन्न मुद्राओं के मुकाबले डॉलर का मजबूत होना है. अमेरिकी फेडरल रिजर्व ने 15 जून को ब्याज दरें 75 आधार अंक बढ़ा दीं और यह साल 1994 के बाद सबसे बड़ी बढ़ोतरी थी. यह बढ़ती महंगाई पर लगाम लगाने की कोशिश में निचली ब्याज दरों की व्यवस्था से उच्च ब्याज दरों की तरफ बदलाव का संकेत था. बॉन्ड पर ज्यादा रिटर्न पाने की तलाश कर रहे निवेशकों के लिए उच्च ब्याज दरें आकर्षक पेशकश होती हैं. ऐसे वैश्विक निवेशक स्थानीय मुद्राओं में अपने निवेश डॉलर में निवेश के बदले बेच देते हैं, जिससे अमेरिकी मुद्रा मजबूत होती है.

दूसरी वजह बढ़ती महंगाई है. भारत में महंगाई इस जनवरी से लगातार पांचवें महीने भारतीय रिजर्व बैंक की 6 फीसद की ऊपरी सीमा से ज्यादा बढ़ी है. मई में खुदरा महंगाई 7.04 फीसद थी. 4 मई को आरबीआइ की तरफ से रेपो दर में, यानी उस दर में जिस पर वह व्यावसायिक बैंकों को उधार देता है, 40 आधार अंकों की बढ़ोतरी की गई जो अप्रैल में 7.79 फीसद थी. जून में आरबीआइ ने रेपो दर में और 50 आधार अंकों (बीपीएस) की बढ़ोतरी की.

अन्य वजहें हैं शेयर बाजारों में विदेशी संस्थागत निवेशकों (एफआइआइ) की तरफ से तेज बिकवाली और कच्चे तेल की ऊंची कीमतें, जो 4 जुलाई को ब्रेंट के लिए 111.5 डॉलर प्रति बैरल थीं. जब अमेरिका और ब्रिटेन में बॉन्ड पर प्राप्तियां (बॉन्ड के ब्याज भुगतान पर रिटर्न) बढ़ जाती हैं, तो एफआइआइ को ये बाजार बेहतर जगह नजर आते हैं और इन बाजारों की तरफ पूंजी की उड़ान की यही वजह है. नेशनल सिक्योरिटीज डिपॉजिटरी लिमिटेड के आंकड़ों के अनुसार, एफआइआइ ने 1 अप्रैल, 2021 और 10 जून, 2022 के बीच भारतीय बाजारों में 2.14 लाख करोड़ रुपए के शेयर बेचे. यूक्रेन में जारी लड़ाई से यह बिकवाली और तेज होगी. एचएसबीसी ग्लोबल रिसर्च ने मई के अपने रिसर्च नोट में कहा, ''लंबी लड़ाई से बिक्री और तेज हो सकती है—ऐसी स्थिति में हमारा अंदाज करीब 7 से 8 अरब डॉलर के बाहर जाने का है, यह पिछले वैश्विक वित्तीय संकट के दौरान देखे गए स्तर के समान है.''

केंद्र सरकार का अलबत्ता यही कहना है कि मुद्राएं भारत में ही नहीं बल्कि दुनिया भर में कमजोर हो रही हैं. केंद्रीय वित्त मंत्री निर्मला सीतारमण ने 1 जुलाई को कहा, ''आरबीआइ विनिमय दर पर कड़ाई से नजर रखे है. इस दुनिया में हम अकेले नहीं हैं. अर्थव्यवस्था के तौर पर हम खुले भी हैं. अगर आप डॉलर के मुकाबले रुपए और डॉलर के मुकाबले अन्य दूसरी मुद्राओं की तुलना करें, तो रुपए ने दूसरों की तुलना में बेहतर प्रदर्शन किया है.''

कमजोर रुपया केवल निर्यातकों के लिए अच्छी खबर है, क्योंकि उन्हें अपने कमाए डॉलर के बदले ज्यादा रुपए मिलते हैं. हालांकि भारतीय अर्थव्यवस्था के लिए यह नुक्सानदायक हैं क्योंकि इससे चालू खाते का घाटा (सीएडी), या देश के निर्यात और आयात के मूल्य के बीच का फर्क, बढ़ने का अंदेशा होता है. सीएडी में बढ़ोतरी की बदौलत रुपया फिर और दबाव में आ सकता है और इससे विदेशों से उधार लेना भी महंगा हो सकता है. भारत का सीएडी 2021-22 की चौथी तिमाही में ज्यादा वस्तु आयात की वजह से बढ़कर 13.4 अरब डॉलर (करीब 1 लाख करोड़ रुपए) पर पहुंच गया, जो एक साल पहले इसी अवधि में 8.1 अरब डॉलर (63,936 करोड़ रुपए) था.

रेटिंग फर्म क्रिसिल ने एक हालिया रिसर्च नोट में कहा है कि वस्तुओं की ज्यादा कीमतों की वजह से आयात के महंगे होने और खुदरा विदेशी मुद्रा बाजार में बोली निर्यात के बाहरी मांग में सुस्ती से घिर जाने के साथ सीएडी के इस वित्तीय साल में जीडीपी के 3 फीसद तक बढ़ने की आशंका है. हमारे निर्यात पर गिरते रुपए के असर को स्वीकार करते हुए सीतारमण ने कहा, ''यही एक चीज है जिस पर मैं बहुत नजर और ध्यान रख रही हूं क्योंकि हमारे कई सारे उद्योगों को अपने उत्पादन के लिए कुछ चीजें अनिवार्यत: आयात करनी होती हैं.'' क्रिसिल को रुपए-डॉलर विनिमय दर में उतार-चढ़ाव बने रहने और इस वित्तीय साल के खत्म होने तक विनिमय खुदरा विदेशी मुद्रा बाजार में बोली दर के प्रति डॉलर 78 पर आकर टिकने की उम्मीद है.

आरबीआइ रुपए को मजबूत करने के लिए विदेशी मुद्रा बाजारों में हस्तक्षेप करता रहा है. उसकी तरफ से सरकारी बैंकों ने भी डॉलर की भारी बिक्री का सहारा लिया. हालांकि, आरबीआइ के इस कदम का दूसरा पहलू भी है. इससे देश का विदेशी मुद्रा भंडार घटता है. बार्कलेज की एक रिपोर्ट कहती है कि आरबीआइ ने देश की मुद्रा को बचाने के लिए इस साल फरवरी से अपने विदेशी मुद्रा भंडार से 41 अरब डॉलर से ज्यादा खर्च किए. भारत का विदेशी मुद्रा भंडार 29 अप्रैल को खत्म होने वाले सप्ताह में पहली बार 600 अरब डॉलर के नीचे आ गया. 24 जून को खत्म सप्ताह में हमारा विदेशी मुद्रा भंडार 593.3 अरब डॉलर था.

रुपए की गिरावट थामने के लिए एक और खुदरा विदेशी मुद्रा बाजार में बोली कदम उठाते हुए 1 जुलाई को केंद्र ने सोने पर आयात शुल्क 10.75 फीसद से बढ़ाकर 15 फीसद कर दिया. मैकलाई कहते हैं, ''अभी तक आरबीआइ विदेशी मुद्रा भंडार से डॉलर बेच रहा था. अब केंद्र आगे आया है. दबाव बहुत ज्यादा है और हमें देखना होगा कि क्या यह और तीव्र होता है. समझदारी बरतिए और अगर बाजार में आपका जोखिम है तो खुद को बचाने के लिए संरचनागत प्रक्रिया अपनाइए.''

फिलहाल तो रुपए के साथ कुछ भी ठीक होता नजर नहीं आ रहा है और विशेषज्ञों की आम सलाह यही है कि भारत को पहले के मुकाबले अपनी और ज्यादा कमजोर मुद्रा का अभ्यस्त होना ही होगा.

गिरती सेहत

फिलहाल तो रुपए के साथ कुछ भी ठीक होता नजर नहीं आ रहा है और विशेषज्ञों की आम सलाह यही है कि भारत को पहले के मुकाबले अपनी और ज्यादा कमजोर मुद्रा का अभ्यस्त होना ही होगा

रुपयाः फिलहाल कुछ भी ठीक होता नजर नहीं आ रहा

एम.जी. अरुण

  • नई दिल्ली,
  • 11 जुलाई 2022,
  • (अपडेटेड 11 जुलाई 2022, 3:51 PM IST)

कमजोर मुद्रा जरूरी नहीं कि कमजोर अर्थव्यवस्था की झलक हो, पर वह उसमें निहित उन मुद्दों की तरफ तो इशारा करती ही है जिन्हें दुरुस्त नहीं किया गया तो नुक्सान हो सकता है. इस लिहाज से फरवरी में यूक्रेन पर रूस के हमले के वक्त से ही रुपए में कोई गिरावट चिंता की बात है. रूसी फौजों के यूक्रेन में दाखिल होने के दिन यानी 24 फरवरी को रुपया प्रति डॉलर 75.4 के स्तर पर था, जो 5 जुलाई को अपने सबसे निचले स्तर 79.14 प्रति डॉलर पर आ गया. मैकलाई फाइनेंशियल सर्विस के सीईओ जमाल मैकलाई कहते हैं, ''रुपया जिस तरह गिर रहा है, उसे देखते हुए यह बेशक 80 प्रति डॉलर तक जाएगा.'' वे यह नहीं बता सकते कि कब, क्योंकि यह बाजार की शक्तियों और निश्चित ही युद्ध, महंगाई और कच्चे तेल के दामों पर निर्भर करता है.

रुपए के कमजोर होने की एक बड़ी वजह विभिन्न मुद्राओं के मुकाबले डॉलर का मजबूत होना है. अमेरिकी फेडरल रिजर्व ने 15 जून को ब्याज दरें 75 आधार अंक बढ़ा दीं और यह साल 1994 के बाद सबसे बड़ी बढ़ोतरी थी. यह बढ़ती महंगाई पर लगाम लगाने की कोशिश में निचली ब्याज दरों की व्यवस्था से उच्च ब्याज दरों की तरफ बदलाव का संकेत था. बॉन्ड पर ज्यादा रिटर्न पाने की तलाश कर रहे निवेशकों के लिए उच्च ब्याज दरें आकर्षक पेशकश होती हैं. ऐसे वैश्विक निवेशक स्थानीय मुद्राओं में अपने निवेश डॉलर में निवेश के बदले बेच देते हैं, जिससे अमेरिकी मुद्रा मजबूत होती है.

दूसरी वजह बढ़ती महंगाई है. भारत में महंगाई इस जनवरी से लगातार पांचवें महीने भारतीय रिजर्व बैंक की 6 फीसद की ऊपरी सीमा से ज्यादा बढ़ी है. मई में खुदरा महंगाई 7.04 फीसद थी. 4 मई को आरबीआइ की तरफ से रेपो दर में, यानी उस दर में जिस पर वह व्यावसायिक बैंकों को उधार देता है, 40 आधार अंकों की बढ़ोतरी की गई जो अप्रैल में 7.79 फीसद थी. जून में आरबीआइ ने रेपो दर में और 50 आधार अंकों (बीपीएस) की बढ़ोतरी की.

अन्य वजहें हैं शेयर बाजारों में विदेशी संस्थागत निवेशकों (एफआइआइ) की तरफ से तेज बिकवाली और कच्चे तेल की ऊंची कीमतें, जो 4 जुलाई को ब्रेंट के लिए 111.5 डॉलर प्रति बैरल थीं. जब अमेरिका और ब्रिटेन में बॉन्ड पर प्राप्तियां (बॉन्ड के ब्याज भुगतान पर रिटर्न) बढ़ जाती हैं, तो एफआइआइ को ये बाजार बेहतर जगह नजर आते हैं और इन बाजारों की तरफ पूंजी की उड़ान की यही वजह है. नेशनल सिक्योरिटीज डिपॉजिटरी लिमिटेड के आंकड़ों के अनुसार, एफआइआइ ने 1 अप्रैल, 2021 और 10 जून, 2022 के बीच भारतीय बाजारों में 2.14 लाख करोड़ रुपए के शेयर बेचे. यूक्रेन में जारी लड़ाई से यह बिकवाली और तेज होगी. एचएसबीसी ग्लोबल रिसर्च ने मई के अपने रिसर्च नोट में कहा, ''लंबी लड़ाई से बिक्री और तेज हो सकती है—ऐसी स्थिति में हमारा अंदाज करीब 7 से 8 अरब डॉलर के बाहर जाने का है, यह पिछले वैश्विक वित्तीय संकट के दौरान देखे गए स्तर के समान है.''

केंद्र सरकार का अलबत्ता यही कहना है कि मुद्राएं भारत में ही नहीं बल्कि दुनिया भर में कमजोर हो रही हैं. केंद्रीय वित्त मंत्री निर्मला सीतारमण ने 1 जुलाई को कहा, ''आरबीआइ विनिमय दर पर कड़ाई से नजर रखे है. इस दुनिया में हम अकेले नहीं हैं. अर्थव्यवस्था के तौर पर हम खुले भी हैं. अगर आप डॉलर के मुकाबले रुपए और डॉलर के मुकाबले अन्य दूसरी मुद्राओं की तुलना करें, तो रुपए ने दूसरों की तुलना में बेहतर प्रदर्शन किया है.''

कमजोर रुपया केवल निर्यातकों के लिए अच्छी खबर है, क्योंकि उन्हें अपने कमाए डॉलर के बदले ज्यादा रुपए मिलते हैं. हालांकि भारतीय अर्थव्यवस्था के लिए यह नुक्सानदायक हैं क्योंकि इससे चालू खाते का घाटा (सीएडी), या देश के निर्यात और आयात के मूल्य के बीच का फर्क, बढ़ने का अंदेशा होता है. सीएडी में बढ़ोतरी की बदौलत रुपया फिर और दबाव में आ सकता है और इससे विदेशों से उधार लेना भी महंगा हो सकता है. भारत का सीएडी 2021-22 की चौथी तिमाही में ज्यादा वस्तु आयात की वजह से बढ़कर 13.4 अरब डॉलर (करीब 1 लाख करोड़ रुपए) पर पहुंच गया, जो एक साल पहले इसी अवधि में 8.1 अरब डॉलर (63,936 करोड़ रुपए) था.

रेटिंग फर्म क्रिसिल ने एक हालिया रिसर्च नोट में कहा है कि वस्तुओं की ज्यादा कीमतों की वजह से आयात के महंगे होने और निर्यात के बाहरी मांग में सुस्ती से घिर जाने के साथ सीएडी के इस वित्तीय साल में जीडीपी के 3 फीसद तक बढ़ने की आशंका है. हमारे निर्यात पर गिरते रुपए के असर को स्वीकार करते हुए सीतारमण ने कहा, ''यही एक चीज है जिस पर मैं बहुत नजर और ध्यान रख खुदरा विदेशी मुद्रा बाजार में बोली रही हूं क्योंकि हमारे कई सारे उद्योगों को अपने उत्पादन के लिए कुछ चीजें अनिवार्यत: आयात करनी होती हैं.'' क्रिसिल को रुपए-डॉलर विनिमय दर में उतार-चढ़ाव बने रहने और इस वित्तीय साल के खत्म होने तक विनिमय दर के प्रति डॉलर 78 पर आकर टिकने की उम्मीद है.

आरबीआइ रुपए को मजबूत करने के लिए विदेशी मुद्रा बाजारों में हस्तक्षेप करता रहा है. उसकी तरफ से सरकारी बैंकों ने भी डॉलर की भारी बिक्री का सहारा लिया. हालांकि, आरबीआइ के इस कदम का दूसरा पहलू भी है. इससे देश का विदेशी मुद्रा भंडार घटता है. बार्कलेज की एक रिपोर्ट कहती है कि आरबीआइ ने देश की मुद्रा को बचाने के लिए इस साल फरवरी से अपने विदेशी मुद्रा भंडार से 41 अरब डॉलर से ज्यादा खर्च किए. भारत का विदेशी मुद्रा भंडार 29 अप्रैल को खत्म होने वाले सप्ताह में पहली बार 600 अरब डॉलर के नीचे आ गया. 24 जून को खत्म सप्ताह में हमारा विदेशी मुद्रा भंडार 593.3 अरब डॉलर था.

रुपए की गिरावट थामने के लिए एक और कदम उठाते हुए 1 जुलाई को केंद्र ने सोने पर आयात शुल्क 10.75 फीसद से बढ़ाकर 15 फीसद कर दिया. मैकलाई कहते हैं, ''अभी तक आरबीआइ विदेशी मुद्रा भंडार से डॉलर बेच रहा था. अब केंद्र आगे आया है. दबाव बहुत ज्यादा है और हमें देखना होगा कि क्या यह और खुदरा विदेशी मुद्रा बाजार में बोली तीव्र होता है. समझदारी बरतिए और अगर बाजार में आपका जोखिम है तो खुद को बचाने के लिए संरचनागत प्रक्रिया अपनाइए.''

फिलहाल तो रुपए के साथ कुछ भी ठीक होता नजर नहीं आ रहा है और विशेषज्ञों की आम सलाह यही है कि भारत को पहले के मुकाबले अपनी और ज्यादा कमजोर मुद्रा का अभ्यस्त होना ही होगा.

RBI ने किया हस्तक्षेप तो विदेशी मुद्रा भंडार घटने की दर हुई कम, रिजर्व बैंक अधिकारियों की स्टडी में आया सामने

Foreign Exchange Reserves of India: 2008-09 के वैश्विक वित्तीय संकट के दौरान भंडार 22 प्रतिशत कम हुआ था. यूक्रेन-रूस युद्ध के बाद उत्पन्न उतार-चढ़ाव के दौरान इसमें केवल छह प्रतिशत की कमी आई है.

Foreign Exchange Reserves of India: भारतीय रिजर्व बैंक (RBI) के हस्तक्षेप से मुद्रा बाजार में उतार-चढ़ाव के दौरान विदेशी मुद्रा भंडार घटने की दर में कमी आई है. आरबीआई अधिकारियों के अध्ययन में यह कहा गया है. अध्ययन में 2007 से लेकर रूस-यूक्रेन युद्ध के कारण मौजूदा समय में उत्पन्न उतार-चढ़ाव को शामिल किया गया है. पीटीआई की खबर के मुताबिक, केंद्रीय बैंक की विदेशी मुद्रा बाजार (foreign exchange reserves) में हस्तक्षेप की एक घोषित नीति है. केंद्रीय बैंक अगर बाजार में अस्थिरता देखता है, तो हस्तक्षेप करता है. हालांकि, रिजर्व बैंक मुद्रा को लेकर कभी भी लक्षित स्तर नहीं देता है.

यूक्रेन-रूस युद्ध के बाद केवल छह प्रतिशत की कमी
खबर के मुताबिक, आरबीआई के वित्तीय बाजार संचालन विभाग के सौरभ नाथ, विक्रम राजपूत और गोपालकृष्णन एस के अध्ययन में कहा गया है कि 2008-09 के वैश्विक वित्तीय संकट के दौरान भंडार (Foreign Exchange Reserves) 22 प्रतिशत कम हुआ था. यूक्रेन-रूस युद्ध के बाद उत्पन्न उतार-चढ़ाव के दौरान इसमें केवल छह प्रतिशत की कमी आई है. अध्ययन में कहा गया है कि इसमें व्यक्त विचार लेखकों के हैं और यह कोई जरूरी नहीं है कि यह केंद्रीय बैंक की सोच से मेल खाए. रिजर्व बैंक विदेशी मुद्रा भंडार को लेकर अपने हस्तक्षेप उद्देश्य को हासिल करने में सफल रहा है. यह विदेशी मुद्रा भंडार में घटने की कम दर से पता चलता है.

29 जुलाई तक 56 अरब डॉलर की कमी
Reserve bank के अध्ययन के मुताबिक, निरपेक्ष रूप से 2008-09 के वैश्विक वित्तीय संकट के कारण मुद्रा भंडार (foreign exchange reserves of india) में 70 अरब अमेरिकी डॉलर की गिरावट आई. जबकि कोविड-19 अवधि के दौरान इसमें 17 अरब डॉलर की ही कमी हुई. वहीं रूस-यूक्रेन युद्ध के कारण इस वर्ष 29 जुलाई तक 56 अरब डॉलर की कमी आई है. अध्ययन में कहा गया है कि उतार-चढ़ाव को प्रभावित करने वाले प्रमुख तत्वों में ब्याज दर, मुद्रास्फीति, सरकारी कर्ज, चालू खाते का घाटा, जिंसों पर निर्भरता राजनीतिक स्थिरता के साथ-साथ वैश्विक स्तर पर घटनाक्रम शामिल हैं.

अभी कितना है लेवल
देश का विदेशी मुद्रा भंडार (foreign exchange reserves of india) बीते 5 अगस्त को खत्म सप्ताह में 89.7 करोड़ डॉलर घटकर 572.978 अरब डॉलर रह गया. भारतीय रिजर्व बैंक (RBI) के आंकड़ों के मुताबिक, इससे पहले 29 जुलाई को समाप्त सप्ताह के दौरान, विदेशी मुद्रा भंडार 2.315 अरब डॉलर बढ़कर 573.875 अरब डॉलर रहा था. आलोच्य सप्ताह में स्वर्ण भंडार का मूल्य 67.1 करोड़ डॉलर बढ़कर 40.313 अरब डॉलर हो गया.

खुदरा विदेशी मुद्रा बाजार में बोली

कैसे स्मार्ट पैसे कारोबार काम करता है

संस्थागत स्मार्ट मनी ट्रेडिंग

"स्मार्ट मनी" कौन है?

मुआवजा खेल में सबसे बड़े और होशियार खिलाड़ियों को संदर्भित करता है। वे केंद्रीय बैंक, बाजार निर्माता और संस्थागत निवेशक हैं। वे पूरे इंटरबैंक मार्केट हैं; ड्यूश बैंक, सिटीग्रुप, बार्कलेज, यूबीएस, बैंक ऑफ अमेरिका, एचएसबीसी, बीएनपी पारिबा और गोल्डमैन सैक्स। वित्तीय बाजारों पर उनका अत्यधिक प्रभाव है, यही वजह है कि स्मार्ट मनी हमेशा बनी रहेगी .

स्मार्ट मनी ट्रेडिंग क्या है?

स्मार्ट मनी ट्रेडिंग संस्थागत व्यापारिक रणनीतियों के उपयोग को संदर्भित करता है जो स्मार्ट मनी के दृष्टिकोण के साथ गठबंधन किए जाते हैं।

संस्थागत स्मार्ट मनी ट्रेडिंग कई स्तरों पर किसी भी खुदरा व्यापार रणनीतियों से बेहतर है। इसका मतलब यह नहीं है कि खुदरा व्यापार रणनीति बिल्कुल काम नहीं करती है। इसका मतलब यह है कि संस्थागत विदेशी मुद्रा खुदरा बाजार की पेशकशों की तुलना में अधिक शक्तिशाली और अधिक सटीक है। स्मार्ट मनी स्वाभाविक रूप से खुदरा व्यापारियों या उनके निपटान के लिए "गूंगा धन" की तुलना में ज्ञान और संसाधनों तक अधिक पहुंच है। स्मार्ट मनी निवेश पर नज़र रखने से आपको सही कथन मिलेगा और बाजारों में कीमत की उम्मीद की जाएगी।

स्टॉप हंट स्मार्ट मनी के साथ समझाया

यदि आप एक वर्ष से अधिक समय से व्यापार कर रहे हैं, तो आपको शायद इसका अनुभव हो। मूल्य आपके दिशात्मक पूर्वाग्रह के खिलाफ चलता है, आपके स्टॉप लॉस को हिट करता है, फिर आपकी प्रारंभिक दिशा को उलट देता है। इसे स्टॉप हंट कहा जाता है। स्टॉप हंट स्मार्ट मनी के लिए एक बेहतर कीमत पर अपनी स्थिति में आने का एक तरीका है। वे आपको एक दिशा में ले जाएंगे, आपको बाहर रोकने के लिए मूल्य में हेरफेर करेंगे, फिर अपनी स्थिति को अवशोषित करेंगे। जब तक आप संस्थागत विदेशी मुद्रा की अवधारणाओं को नहीं सीखेंगे और स्मार्ट मनी के परिप्रेक्ष्य में चीजों को कैसे देखेंगे, यह आपके साथ बार-बार होगा।

संस्थागत ट्रेडिंग फॉरेक्स बनाम रिटेल ट्रेडिंग फॉरेक्स

विदेशी मुद्रा में ऑनलाइन ट्रेडिंग की विदेशी मुद्रा में संस्थागत ट्रेडिंग रणनीतियाँ बहुत अधिक नहीं पाई जाती हैं। मुद्रा व्यापार की दुनिया में स्मार्ट मनी ट्रेडिंग रणनीतियाँ सबसे अच्छे रखे गए रहस्यों में से एक हैं। प्रत्येक शुरुआती व्यापारी जो विदेशी मुद्रा व्यापार में शामिल होना चाहता है, अक्सर शैक्षिक सामग्री और विदेशी मुद्रा पाठ्यक्रमों के लिए ऑनलाइन शोध करना शुरू कर देता है, या कोई उन्हें रस्सियों को दिखाने के लिए तैयार होता है। दुर्भाग्य से, खुदरा व्यापार की दुनिया में अधिकांश शैक्षिक प्लेटफॉर्म और ट्रेडिंग सामग्री पूरी तरह से बेकार है। यह कहना है कि खुदरा व्यापार की दुनिया में कोई लाभदायक व्यापारी नहीं हैं, हैं। हालांकि, बहुमत नहीं है क्योंकि वे बस झुंड का पालन कर रहे हैं। खुदरा व्यापारियों के बहुमत कयामत के एक चक्र में फंस गए हैं, जहां वे या तो छोड़ देते हैं, या संस्थागत व्यापार की खोज करते हैं। एक बार जब आप संस्थागत व्यापार की खोज कर लेते हैं और सीखते हैं कि स्मार्ट मनी उनके आदेशों को कैसे लागू करते हैं, तो आप इन अवधारणाओं को अपनी स्वयं की शैली में लागू कर सकते हैं और जबरदस्त परिणाम देख सकते हैं।

इंस्टीट्यूशनल ट्रेडिंग कैसे सीखें

संस्थागत व्यापार, या स्मार्ट मनी ट्रेडिंग उन भाग्यशाली द्वारा महारत हासिल है जो इन अवधारणाओं को सिखाने के लिए एक मेंटर को खोजने के लिए पर्याप्त हैं। इन अवधारणाओं को अक्सर बाजार के निष्कर्षों के वर्षों और वर्षों के माध्यम से पेशेवर व्यापारियों द्वारा खोजा जाता है। उन्हें किसी किताब में नहीं लिखा जाता है और न ही कक्षाओं में पढ़ाया जाता है। संस्थान व्यापारी, के लिए प्रशिक्षक स्मार्ट मनी मेंटरशिप संस्थागत विदेशी मुद्रा में सर्वश्रेष्ठ में से एक के तहत अध्ययन करने के लिए भाग्यशाली व्यक्तियों में से एक था। उन्होंने अपने द्वारा सीखे गए संस्थागत ज्ञान को अपने स्मार्ट मनी ट्रेडिंग अवधारणाओं को आगे बढ़ाया और विकसित किया। उसके साथ काम करना सम्मान और सौभाग्य की बात है।

स्मार्ट मनी ट्रेडिंग इंटरबैंक मार्केट

इंटरबैंक मार्केट

इंटरबैंक मार्केट मुद्रा बाजार है जहां वास्तव में बड़ा और स्मार्ट पैसा बदल रहा है। यह शीर्ष स्तर का विदेशी मुद्रा बाजार है जहां जेपी मॉर्गन जैसे खेल के सबसे बड़े प्रतिभागी हैं, ड्यूश बैंक, बार्कलेज, सिटीग्रुप, एचएसबीसी, गोल्डमैन सैक्स और अन्य प्रमुख बैंक विभिन्न मुद्राओं का आदान-प्रदान करते हैं। वे स्मार्ट मनी हैं और यह उनका खेल है, हम इसे खेलने के लिए बस यहां हैं।

इंटरबैंक बाजार किसी भी समय मुद्रा खरीदने या बेचने (भले ही कोई खरीदार या विक्रेता न हों), मार्केट मेकर्स के रूप में कार्य करते हुए प्रत्येक मुद्रा जोड़ी के लिए बोली और पूछें मूल्य प्रदान करेगा। ये बड़े बैंक लगभग जिम्मेदार हैं। विदेशी मुद्रा बाजार पर दैनिक मात्रा का 70%।

स्मार्ट मनी ट्रेडिंग इंटरबैंक मार्केट और द हर्ड

खुदरा बाजार (झुंड)

इंटरबैंक बाजार के दूसरी तरफ, आपके पास खुदरा बाजार, और खुदरा व्यापारी हैं। यदि आप इसे पढ़ रहे हैं, तो आप इस समूह का सबसे अधिक संभावना हिस्सा हैं। हम बाजार भागीदार भी हैं, लेकिन हम छोटे लोग हैं।

हम भी छोटे आकार के वित्तीय संस्थान हैं जैसे बैंक, हेज फंड, विदेशी मुद्रा दलाल, दिन के व्यापारी और सट्टेबाज। इंटरबैंक बाजार के बाहर कुछ भी खुदरा बाजार, या झुंड माना जा सकता है। इंटरबैंक बाजार झुंड के सभी खरीद और बिक्री के आदेशों का मिलान करने की कोशिश करेगा, हालांकि वास्तव में हमेशा खरीदारों और विक्रेताओं का असंतुलन होता है। इस असंतुलन के साथ, अंतरबैंक बाजार का उपयोग किया जाता है, इसलिए प्रत्येक खरीद और बिक्री के आदेश को निष्पादित करने के लिए प्रतिपक्ष होता है, जो एक तरलता प्रदाता के रूप में कार्य करता है।

स्मार्ट मनी ट्रेडिंग रिटेल मार्केट नेट लॉन्ग है

जब रिटेल मार्केट नेट लॉन्ग है तो एफएक्स मार्केट्स में इंटरबैंक मार्केट (स्मार्ट मनी) नेट शॉर्ट है

स्मार्ट मनी ट्रेडिंग रिटेल मार्केट नेट शॉर्ट है

जब रिटेल मार्केट नेट शॉर्ट होता है तो एफएक्स मार्केट में इंटरबैंक मार्केट (स्मार्ट मनी) नेट लॉन्ग होता है

स्मार्ट मनी और रिटेल मार्केट के बीच संबंध

जब खुदरा बाजार शुद्ध लंबा होता है, तो स्मार्ट पैसा शुद्ध लघु और इसके विपरीत होता है। जब खुदरा बाजार शुद्ध होता है, तो स्मार्ट धन शुद्ध दीर्घायु होगा।

खुदरा बाजार में एक दिन के व्यापारी के रूप में, हम प्रमुख बैंकों (AKA Smart Money) को AGAINST का व्यापार कर रहे हैं।

अब आप देखते हैं कि खुदरा व्यापारी इतने नुकसान में क्यों हैं? अब आप देखते हैं कि वे हमें "डम्ब मनी" क्यों कहते हैं? अब क्या आप समझते हैं कि स्मार्ट मनी कैसे काम करती है और संस्थागत ट्रेडिंग रणनीति आपकी सफलता को कैसे आगे बढ़ाएगी?

यदि हां, तो आप हमारी जांच कर सकते हैं स्मार्ट मनी मेंटरशिप जहाँ हम संस्थागत विदेशी मुद्रा व्यापार की उन्नत अवधारणाओं के लिए शुरुआत सिखाते हैं।

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