लाभ और रोक

दहेज और बाल विवाह पर रोक से सबसे ज्यादा लाभ दलितों को
दलित चिंतक और पटना विवि के प्रो. रमाशंकर आर्य कहते हैं कि दहेज और बाल विवाह से वैसे तो हर वर्ग, हर जाति समूह प्रभावित है, पर सबसे ज्यादा प्रभावित हैं दलित। सवर्ण जातियों में बाल विवाह कम हुआ है, पर दहेज बढ़ा है। वहीं गरीब दलितों में बाल विवाह सबसे ज्यादा है और जिन थोड़ी संख्या में दलितों ने विकास किया है, उनके बीच दहेज भी तेजी से बढ़ा है। दहेज और बाल विवाह ने दलितों के विकास को रोक दिया है। कम उम्र में शादी के बाद कम उम्र में बच्चे भी हो जाते हैं। इससे दलित किशोरी का स्वास्थ्य जीवन भर के लिए प्रभावित हो जाता है। लड़के भी पढ़ाई छोड़कर काम-धंधे में लग जाते हैं।
आंबेडकर ने समाज के विकास के लिए हर दृष्टि से विचार किया। सभी समस्याओं के बारे में चर्चा की और रास्ता बताया। वे दलितों में सामाजिक सुधार के भी हिमायती थे। आज अगर वे होते, तो निश्चित रूप से बाल विवाह और दहेज जैसी बीमारी को खत्म करने का आह्वान करते। बाल विवाह को मुद्दा बनना चाहिए। पूरे समाज का मुद्दा बनना चाहिए। बिहार को आगे बढ़ना है, तो इस बीमारी को खत्म करना ही होगा। इसके खत्म होने से दलितों की बड़ी आबादी के विकास का रास्ता खुल जाएगा। स्वास्थ्य बेहतर होगा। उनकी आर्थिक स्थिति पर भी फर्क दिखेगा। आर्थिक स्थिति बेहतर होगी। बाल विवाह रुकने का एक सबसे बड़ा लाभ यह होगा कि दलितों में भी शिक्षा पर जोर बढ़ेगा। शिक्षा पर जोर बढ़ेगा, तो आनेवाली दलितों की पीढ़ी पूरी तरह बदल जाएगी। खुद आंबेडकर भी दलितों में शिक्षा के प्रसार पर काफी जोर देते रहे थे। दलित वर्ग में ही कुपोषण की समस्या सबसे ज्यादा दिखती है। यह बार-बार चर्चा होती है कि कुपोषण के कारण बच्चों का शारीरिक विकास नहीं होता। उनकी लंबाई जितनी बढ़नी चाहिए, उतनी नहीं बढ़ पाती। इसके साथ ही मस्तिष्क का भी विकास प्रभावित होता है। इस दृष्टि से देखें, तो बाल विवाह सबसे ज्यादा दलितों में है, कम उम्र में बच्चे होते हैं और स्वाभाविक रूप से वे कुपोषण के शिकार होते हैं। जब बच्चे समझदार हो जाएं, बालिग हो जाएं, तो उनकी शादी करने से इन समस्याओं को बहुत हद तक रोका जा सकेगा। पहले तो जन्म लेते के साथ ही लोग शादी तय कर देते थे। अब थोड़ा विकास हुआ है, फिर भी बाल विवाह जारी है। बहुत अर्से के बाद किसी सरकार ने बाल विवाह और दहेज प्रथा पर रोक को मुद्दा बनाया है। इसे सिर्फ नैतिक समर्थ देने की जरूरत है, बल्कि सक्रियता के साथ हर वर्ग को आगे आने की जरूरत है।
कल्याणकारी योजनाओं के लाभ के लिए आधार की अनिवार्यता पर रोक नहीं लगाएगा सुप्रीम कोर्ट
सुप्रीम कोर्ट ने कहा कि आधार के अभाव में कल्याणकारी योजनाओं के लाभ से वंचित कोई भी व्यक्ति न्यायालय नहीं आया है. हम सिर्फ आशंका पर रोक नहीं लगा सकते हैं. The post कल्याणकारी योजनाओं के लाभ के लिए आधार की अनिवार्यता पर रोक नहीं लगाएगा सुप्रीम कोर्ट appeared first on The Wire - Hindi.
सुप्रीम कोर्ट ने कहा कि आधार के अभाव में कल्याणकारी योजनाओं के लाभ से वंचित कोई भी व्यक्ति न्यायालय नहीं आया है. हम सिर्फ आशंका पर रोक नहीं लगा सकते हैं.
सुप्रीम कोर्ट और आधार कार्ड (फोटो: पीटीआई)
सुप्रीम कोर्ट ने समाज कल्याण की योजनाओं का लाभ उठाने के लिए आधार की अनिवार्यता संबंधी केंद्र की अधिसूचना पर अंतरिम आदेश देने से मंगलवार को इंकार कर दिया. इस बीच, सरकार ने आश्वासन दिया है कि किसी भी व्यक्ति को इस पहचान के अभाव में वंचित नहीं किया जायेगा.
न्यायमूर्ति खानविलकर और न्यायमूर्ति नवीन सिन्हा की अवकाशकालीन पीठ ने टिप्पणी की कि याचिकाकर्ताओं की महज इस आशंका के आधार पर कोई अंतरिम आदेश नहीं दिया जा सकता है कि आधार के अभाव में किसी भी व्यक्ति को विभिन्न समाज कल्याण योजनाओं के लाभ से वंचित किया जा सकता है और वह भी ऐसी स्थिति में जब कोई भी प्रभावित व्यक्ति न्यायालय नहीं आया है.
न्यायाधीशों ने कहा,’महज आशंका के आधार पर कोई भी अंतरिम आदेश नहीं दिया जा सकता है. आपको एक सप्ताह इंतजार करना होगा. यदि किसी व्यक्ति को इस लाभ से वंचित किया जाता है तो आप न्यायालय का ध्यान इस ओर आर्कषित कर सकते हैं.’
तीन याचिकाकर्ताओं की ओर से बहस कर रहे वरिष्ठ अधिवक्ता श्याम दीवान से पीठ ने कहा,’हम ऐसे आदेश नहीं दे सकते जो अनिश्चित हैं. आप कह रहे हैं कि किसी को इससे वंचित किया जा सकता है परंतु हमारे सामने तो ऐसा कोई व्यक्ति नहीं है. पीठ ने कहा, यह शासन एक लोकतांत्रिक कल्याणकारी व्यवस्था है जो कह रहा है कि वह इन लाभों से किसी को भी वंचित नहीं करेगा. फिलहाल वैकल्पिक पहचान पत्र वैध हैं.’
सुनवाई के दौरान केंद्र की ओर से अतिरिक्त सालिसीटर जनरल तुषार मेहता ने पीठ से कहा कि विभिन्न समाज कल्याण की योजनाओं के तहत उन लोगों को भी लाभ दिया जायेगा जिनके पास आधार नहीं है.
उन्होंने आठ फरवरी की अधिसूचना का जिक्र करते हुए कहा कि इसमे कहा गया है कि यदि किसी के पास आधार नहीं है तो भी उसे मतदाता पहचान पत्र, ड्राइविंग लाइसेंस, पासपोर्ट और पैन कार्ड जैसे पहचान पत्रों का इस्तेमाल करने पर इन योजनाओं का लाभ मिलेगा.
मेहता ने कहा,’इन पहचान का मतलब यह है कि कोई भी छद्म व्यक्ति इन योजनाओं का लाभ प्राप्त नहीं कर सके.इन योजनाओं का लाभ प्राप्त करने के लिये दस अन्य दस्तावेज वैध हैं.’
उन्होंने यह भी कहा कि सरकार ने जिन व्यक्तियों के पास आधार नहीं है और वे विभिन्न कल्याणकारी योजनाओं का लाभ प्राप्त कर रहे हैं, उनके लिए आधार के लिए पंजीकरण कराने हेतु 30 जून की तारीख बढाकर 30 सितंबर कर दी है. इस अवधि में किसी भी व्यक्ति को इन लाभों से वंचित नहीं किया जायेगा.
पीठ ने 10 जून के शीर्ष अदालत के फैसले का हवाला देते हुये कहा कि इसने पैन कार्ड और आयकर रिटर्न के लिए आधार अनिवार्य करने संबंधी आयकर कानून के प्रावधान को वैध ठहराया है परंतु उसने निजता के अधिकार के मुद्दे पर संविधान पीठ द्वारा विचार होने तक इसके अमल पर आंशिक रोक लगा दी है.
न्यायालय ने इस फैसले में की गयी टिप्पणियों का जिक्र करते हुए इस मामले को सात जुलाई को उचित पीठ के समक्ष सूचीबद्ध कर दिया.
रोक के बाद भी 20 कर्मचारियों को दिया पदोन्नति में आरक्षण का लाभ
सिंगरौली, मध्य प्रदेश। नगर पालिक निगम सिंगरौली के आयुक्त द्वारा प्रतिबंध के बाद भी नगर निगम के कर्मचारियों को पदोन्नति में आरक्षण का लाभ देने का मामला प्रकाश में आया है। मसलन निगम आयुक्त ने पदोन्नति में आरक्षण का लाभ देकर सुप्रीम कोर्ट के आदेश को भी चुनौती दे डाली है।
नगर निगम आयुक्त की उक्त कार्रवाई को क्षुब्ध कर्मचारियों ने असंवैधानिक बताते हुए प्रदेश के मुख्यमंत्री, नगरीय प्रशासन मंत्री, मुख्य सचिव, रीवा संभागायुक्त और कलेक्टर से जांच कर कार्रवाई की मांग की है। प्राप्त जानकारी के अनुसार नगर पालिक निगम के आयुक्त आरपी सिंह द्वारा गत 19 मई 2021 को सुप्रीम कोर्ट के रोक लगाने के बाद भी नगर निगम के 20 कर्मचारियों को पदोन्नति में आरक्षण का लाभ देते हुए आदेश जारी किया गया हैं। जिससे निगम के ही एक कर्मचारी वर्ग में नाराजगी और आक्रोश का माहौल है।
बताया जाता है कि पदोन्नति पाने वाले कर्मचारी अब कर्मचारी उपस्थित पंजी में अपना पदनाम बदलकर हस्ताक्षर करना भी शुरू कर दिया है। बताया जाता है कि अपनी कार्यप्रणाली से सुर्खियों में रहने वाले निगम आयुक्त श्री सिंह कर्मचारियों की पदोन्नति में आरक्षण का लाभ देने की फाइल में नगर निगम के प्रशासक और कलेक्टर से भी अनुमोदन लेने की जहमत भी नहीं उठाई है। नगर निगम के महापौर का कार्यकाल खत्म होने के बाद प्रदेश सरकार ने कलेक्टर को निगम का प्रशासक नियुक्त किया है। नगर निगम के हर फैसले की फाइल नस्ती प्रशासक के पास भेजनी चाहिए।
2016 से सुप्रीम कोर्ट ने लगाई है रोक
ज्ञात हो कि देश की सबसे अदालत सर्वोच्च न्यायालय द्वारा मध्यप्रदेश में पदोन्नति में आरक्षण देने के मामले पर 2016 से ही रोक लगा दिया गया है। साथ ही अभी भी यह मामला सुप्रीम कोर्ट में विचाराधीन है। जिससे मध्यप्रदेश की शिवराज सिंह सरकार ने कर्मचारियों को पदोन्नति में आरक्षण का लाभ देने के मामले में सीधा बचते हुए गृह विभाग के कर्मचारियों को कार्यवाहक जैसा प्रभार सौंप कर खुश करने का प्रयास कर रही है। गौरतलब है कि मध्यप्रदेश में लगभग साढ़े चार साल के दरम्यान 50 हजार से ज्यादा शासकीय सेवक बिना पदोन्नति के सेवा निवृत्त हो चुके हैं। और प्रदेश के लाखों शासकीय सेवक अभी भी पदोन्नति का इंतजार कर रहे हैं।
एक वर्ग जता चुका है आपत्ति
जानकारी के मुताबिक नगर निगम के एक कर्मचारी वर्ग ने आयुक्त से रोक के बाद भी पदोन्नति में आरक्षण का लाभ देने के आदेश पर आपत्ति जताते हुए प्रक्रिया को निरस्त करने की मांग कर चुके है।साथ ही इस पदोन्नति आदेश को सुप्रीम कोर्ट के आदेश की अवमानना का मामला भी मानते हुए प्रदेश सरकार से रोक लगाने की मांग कर रहे हैं।
हाई कोर्ट में चुनौती देने की तैयारी
निगम आयुक्त द्वारा सुप्रीम कोर्ट के रोक लगाने के बाद भी निगम कर्मचारियों को पदोन्नति में आरक्षण का लाभ देने के मामले के आदेश को कुछ कर्मचारी उच्च न्यायालय जबलपुर में चुनौती देने की तैयारी कर रहे हैं।
7 साल की सीनियर क्लर्क बनी जूनियर
बताया जाता है कि नगर निगम आयुक्त आरपी सिंह द्वारा पदोन्नति में आरक्षण देने से 7 साल की जूनियर सहायक ग्रेड 3 की कर्मचारी सीनियर बन गई है। जानकारी के अनुसार नगर निगम की विद्या नायर 7 साल की सीनियर सहायक ग्रेड 3 कर्मचारी है, जो उससे 7 साल की जूनियर सहायक ग्रेड 3 कर्मचारी सविता साकेत का पदोन्नति में आरक्षण का लाभ देने से अब जूनियर बन गई है। यानी कमिश्नर की उक्त कार्रवाई से सामान्य वर्ग के कर्मचारियों का भारी लाभ और रोक नुकसान हुआ है।
दबा दिया गया आदेश
नगर निगम कर्मचारियों और आम लोगों में चर्चा का बाजार गर्म है कि जिन 20 कर्मचारियों की पदोन्नति दी गई है वह अभी तक किसी को आदेश की प्रति नहीं दिखा रहे हैं। शायद इसे सार्वजनिक होने पर कोई बाधा उत्पन्न होने का ख़तरा नही मंडराए। हालांकि क्षेत्र में सुप्रीम कोर्ट के रोक के बावजूद भी पदोन्नति में आरक्षण देने का मामला सर चढ़कर बोल रहा है।
बात करने से कतरा रहे कमिश्नर
नगर निगम के 20 कर्मचारियों को गत 19 मई 2021 को पदोन्नति में आरक्षण का लाभ देने के आदेश पर बात करने से नगर निगम के कमिश्नर आरपी सिंह मीडिया से बात करने से कतरा रहे हैं।
इनका कहना है
इस संबंध में कमिश्नर से जानकारी ली है तो उन्होंने बताया कि नगर निगम कर्मचारियों का पदोन्नति करने की कार्रवाई का मामला उनके क्षेत्राधिकार में आता है।
आरआर मीना, कलेक्टर एवं प्रशासक नगर पालिक निगम सिंगरौली
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कल्याणकारी योजनाओं के लाभ के लिए आधार की अनिवार्यता पर रोक नहीं लगाएगा सुप्रीम कोर्ट
सुप्रीम कोर्ट ने कहा कि आधार लाभ और रोक के अभाव में कल्याणकारी योजनाओं के लाभ से वंचित कोई भी व्यक्ति न्यायालय नहीं आया है. हम सिर्फ आशंका पर रोक नहीं लगा सकते हैं. The post कल्याणकारी योजनाओं के लाभ के लिए आधार की अनिवार्यता पर रोक नहीं लगाएगा सुप्रीम कोर्ट appeared first on The Wire - Hindi.
सुप्रीम कोर्ट ने कहा कि आधार के अभाव में कल्याणकारी योजनाओं के लाभ से वंचित कोई भी व्यक्ति न्यायालय नहीं आया है. हम सिर्फ आशंका पर रोक नहीं लगा सकते हैं.
सुप्रीम कोर्ट और आधार कार्ड (फोटो: पीटीआई)
सुप्रीम कोर्ट ने समाज कल्याण की योजनाओं का लाभ उठाने के लिए आधार की अनिवार्यता संबंधी केंद्र की अधिसूचना पर अंतरिम आदेश देने से मंगलवार को इंकार कर दिया. इस बीच, सरकार ने आश्वासन दिया है कि किसी भी व्यक्ति को इस पहचान के अभाव में वंचित नहीं किया जायेगा.
न्यायमूर्ति खानविलकर और न्यायमूर्ति नवीन सिन्हा की अवकाशकालीन पीठ ने टिप्पणी की कि याचिकाकर्ताओं की महज इस आशंका के आधार पर कोई अंतरिम आदेश नहीं दिया जा सकता है कि आधार के अभाव में किसी भी व्यक्ति को विभिन्न समाज कल्याण योजनाओं के लाभ से वंचित किया जा सकता है और वह भी ऐसी स्थिति में जब कोई भी प्रभावित व्यक्ति न्यायालय नहीं आया है.
न्यायाधीशों ने कहा,’महज आशंका के आधार पर कोई भी अंतरिम आदेश नहीं दिया जा सकता है. आपको एक सप्ताह इंतजार करना होगा. यदि किसी व्यक्ति को इस लाभ से वंचित किया जाता है तो आप न्यायालय का ध्यान इस ओर आर्कषित कर सकते हैं.’
तीन याचिकाकर्ताओं की ओर से बहस कर रहे वरिष्ठ अधिवक्ता श्याम दीवान से पीठ ने कहा,’हम ऐसे आदेश नहीं दे सकते जो अनिश्चित हैं. आप कह रहे हैं कि किसी को इससे वंचित किया जा सकता है परंतु हमारे सामने तो ऐसा कोई व्यक्ति नहीं है. पीठ ने कहा, यह शासन एक लोकतांत्रिक कल्याणकारी व्यवस्था है जो कह रहा है कि वह इन लाभों से किसी को भी वंचित नहीं करेगा. फिलहाल वैकल्पिक पहचान पत्र वैध हैं.’
सुनवाई के दौरान केंद्र की ओर से अतिरिक्त सालिसीटर जनरल तुषार मेहता ने पीठ से कहा कि विभिन्न समाज कल्याण की योजनाओं के तहत उन लोगों को भी लाभ दिया जायेगा जिनके पास आधार नहीं है.
उन्होंने आठ फरवरी की अधिसूचना का जिक्र करते हुए कहा कि इसमे कहा गया है कि यदि किसी के पास आधार नहीं है तो भी उसे मतदाता पहचान पत्र, ड्राइविंग लाइसेंस, पासपोर्ट और पैन कार्ड जैसे पहचान पत्रों का इस्तेमाल करने पर इन योजनाओं का लाभ मिलेगा.
मेहता ने कहा,’इन पहचान का मतलब यह है कि कोई भी छद्म व्यक्ति इन योजनाओं का लाभ प्राप्त नहीं कर सके.इन योजनाओं का लाभ प्राप्त करने के लिये दस अन्य दस्तावेज वैध हैं.’
उन्होंने यह भी कहा कि सरकार ने जिन व्यक्तियों के पास आधार नहीं है और वे विभिन्न कल्याणकारी योजनाओं का लाभ प्राप्त कर रहे हैं, उनके लिए आधार के लिए पंजीकरण कराने हेतु 30 जून की तारीख बढाकर 30 सितंबर कर दी है. इस अवधि में किसी भी व्यक्ति को इन लाभों से वंचित नहीं किया जायेगा.
पीठ ने 10 जून के शीर्ष अदालत के फैसले का हवाला देते हुये कहा कि इसने पैन कार्ड और आयकर रिटर्न के लिए आधार अनिवार्य करने संबंधी आयकर कानून के प्रावधान को वैध ठहराया है परंतु उसने निजता के अधिकार के मुद्दे पर संविधान पीठ द्वारा विचार होने तक इसके अमल पर आंशिक रोक लगा दी है.
न्यायालय ने इस फैसले में की गयी टिप्पणियों का जिक्र करते हुए इस मामले को सात जुलाई को उचित पीठ के समक्ष सूचीबद्ध कर दिया.
UGC की नई तैयारी, PhD प्रवेश के लिए प्रक्रिया में बदलाव अब इन छात्रों को मिलेगा लाभ, इन प्रस्तावों पर रोक
यूजीसी (UGC) ने एकबार फिर से बड़ी तैयारी की है। दरअसल विश्वविद्यालय अनुदान आयोग द्वारा पीएचडी में प्रवेश (PhD Admission) के लिए दाखिले नियम को फिर से संशोधित किया गया है। संशोधित नियम के तहत 4 साल अंडरग्रैजुएट डिग्री होल्डर कम से कम 7.5 सीजीपीए के साथ अंडरग्रैजुएट डिग्री धारी है। उनके लिए पीएचडी प्रोग्राम आधिकारिक तौर पर ज्वाइन करने का मौका उन्हें प्रदान किया गया है।
इसके अलावा प्रोफेशनल भी पार्ट टाइम डिग्री रिसर्च कोर्स कर सके, इसके लिए तैयारी पूरी की जा रही है। यूजीसी द्वारा नेट जेआरएफ क्वालीफायर के लिए 60 फीसद सीट आरक्षित करने के फैसले को लेकर प्रस्ताव को फिलहाल रोका गया है। यूजीसी के चेयरमैन के मुताबिक इस तरह डिग्रीधारियों के सुझावों को ध्यान में रखकर फिलहाल इस तरह के विचार को रोका गया है।
नए नियम के लाभ और रोक तहत ऐसे उम्मीदवार जो 4 साल के डिग्री धारक है, उन्हें कम से कम 7.5 सीजीपीए होने चाहिए। वह पीएचडी में एडमिशन ले सकते हैं। इसके अलावा 4 साल की डिग्री और फिर पीजी से पहले और दूसरे साल के छात्र भी पीएचडी में एडमिशन लेने की पात्रता रखेंगे। साथ ही नए नियम के तहत प्रोफेशनल भी पार्ट टाइम पीएचडी प्रोग्राम में भाग ले सकते हैं। इसके लिए उन्हें नो ऑब्जेक्शन सर्टिफिकेट लेना अनिवार्य होगा।नो ऑब्जेक्शन सर्टिफिकेट में संस्थान की तरफ से यह लिखा जाना अनिवार्य होगा कि उनकी ऑफिशियल ड्यूटी द्वारा उन्हें यह प्रोग्राम करने की सुविधा दी जाती है वह रिसर्च के समय जरूरी समय निकाल सकेंगे। नए मानदंड में पीएचडी थीसिस जमा करने के लिए पियर रिव्यू जनरल में शोध पत्र प्रकाशित करने की अनिवार्य आवश्यकता को भी समाप्त कर दिया गया है।संशोधित नियम के तहत सेवानिवृत्ति से पहले 3 साल से कम सेवा वाले संकाय सदस्यों को नए शोध में विद्वानों की निगरानी करने की अनुमति नहीं दी जाएगी। प्रत्येक पर्यवेक्षक को दो अंतरराष्ट्रीय शोध विद्वानों को एकत्रित आधार पर मार्गदर्शन देने की अनुमति दी जाएगी। पीएचडी विद्वान की अनुमति संख्या के ऊपर पर्यवेक्षण कर सकते हैं।