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डेब्ट फंड्स के बारे में अधिक जाने

डेब्ट फंड्स के बारे में अधिक जाने
गोल्ड या म्युच्यूअल फंड्स: किसमें इन्वेस्ट करना चाहिए?

रिटायरमेंट के बाद कौन सा म्यूचुअल फंड हो सकता है बेहतर विकल्प? यहां जाने जवाब

इक्विटी ओरिएंटेड स्कीम में भी इंवेस्टर्स अकाउंट्स की संख्या 24.3 लाख बड़ी है

रिटायरमेंट के बाद नये इनकम के रास्ते पूरी तरह से बंद हो जाते हैं. यही कारण है ​कि वरिष्ठ नागरिकों को सुरक्षित निवेश विक . अधिक पढ़ें

  • News18Hindi
  • Last Updated : February 19, 2021, 07:16 IST

नई दिल्ली. आमतौर पर वरिष्ठ नागरिकों को सलाह दी जाती है कि वो रिटायरमेंट के बाद इक्विटी म्यूचुअल फंड में निवेश न करें. अधिकतर लोगों का कहना होता है कि रिटायरमेंट के बाद की जिंदगी के लिए म्यूचुलअल फंड एक सुरक्षित विकल्प नहीं है. जानकार इसे एक गलत धारणा बताते हैं. उनका कहना है कि वरिष्ठ नागरिकों को केवल सुरक्षित विकल्प के बारे में ही नहीं सोचना चाहिए. माना जाता है कि म्यूचुअल फंड में निवेश करने का एक सबसे बड़ा फैक्टर इसका जोख़िम भी होता है. लेकिन इसके बाद भी फाइनेंशियल प्लानर्स का मानना है कि डेब्ट फंड्स के बारे में अधिक जाने इक्विटी में भी निवेश करना चाहिए.

साथ ही, किसी भी निवेश विकल्प को चुनने से पहले निवेशक को अपने भविष्य की जरूरतें और लंबे समय में निवेश करने की क्षमता का आंकलन भी करना चाहिए. जानकार बताते हैं कि लंबे समय में जोख़िम उठाने की क्षमता पर ही निर्भर करता है कि किसी निवेशक को सुरक्षित विकल्प के अलावा और किस विकल्प में निवेश करना चाहिए. इसी हिसाब से वे इक्विटी म्यूचुअल फंड स्कीम्स में निवेश कर सकते हैं.

इक्विटी म्यूचुअल फंड में भी कम कर सकते हैं जोख़िम
इक्विटी म्यूचुअल फंड के अंदर भी अपने निवेश को डाईवर्सिफाई करके जोख़िम को कम किया जा सकता है. इसमें उन्हें मल्टी-कैप फंड्स के अलावा लार्ज-कैप, डायनेमिक एसेट एलोकेशन फंड्स का भी विकल्प मिलता है. लेकिन, फाइनेंशियल प्लानर्स का यह भी कहना है कि वरिष्ठ नागरिकों को ज्यादा जोख़िम वाले म्यूचुअल फंड्स में निवेश करने से बचना चाहिए. माना जाता है कि किसी थीमेटिक, सेक्टोरल फंड्स या कोई डेब्ट फंड्स के बारे में अधिक जाने ऐसा फंड जिसमें मिडकैप व स्मॉलकैप में निवेश किया जाता है, उससे बचना चाहिए.

क्या डेब्ट म्यूचुअल फंड एक विकल्प बन सकता है?
बहुत से वरिष्ठ नागरिक डेब्ट म्यूचुअल फंड्स में भी निवेश करने के बारे में सोचते हैं. इक्विटी म्यूचुअल फंड्स की तरह इसमें ज्यादा उठापटक नहीं देखने को मिलती है, लेकिन इसमें भी जोख़िम होता है. हालांकि, डेब्ट फंड्स द्वारा होल्ड किए गए उच्च यील्ड वाले सिक्योरिटीज में ज्यादा रिटर्न तो मिलता है लेकिन इसमें भी बहुत जोखिम होता है. अल्ट्रा शॉर्ट टर्म जैसे कुछ डेब्ट म्यूचुअल फंड्स हैं जो थोड़े सुरक्षित होते हैं और ये फिक्स्ड डिपॉजिट या अन्य फिक्स्ड इनकम प्रोडक्ट्स से बेहतर रिटर्न देते हैं. टैक्स के मोर्चे पर भी ये बेहतर होते हैं. इसलिए माना जाता है कि इससे उन लोगों को फायदा होगा जो उच्च टैक्स की श्रेणी में आते हैं. जरूरत के आधार पर इसे आसानी से लिक्विडेट किया जाता सकता है.

निवेश के फैसले से पहले इन बातों को रखें ध्यान
चूंकि, रिटायरमेंट के बाद नये इनकम के रास्ते बिल्कुल बंद हो जाते हैं. जानकार बताते हैं किसी भी वरिष्ठ नागरिक को अपने जोख़िम उठाने की क्षमता और रेगुलर इनकम की जरूरत को ध्यान में रखकर ही कोई फैसला लेना चाहिए. किसी भी निवेश की लिक्विडिटी पर भी ध्यान देने की जरूरत है कि रिटायरमेंट के बाद के जीवन के लिए लंबी अवधि के लॉक-इन पीरियड से समस्या हो सकती है.

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Investment plan: रिस्क-फ्री न होने पर भी ये इन्वेस्टमेंट प्रोडक्ट्स आपके लिए हो सकते हैं बेहतर

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Investment Tips: फिक्स्ड डिपोजिट, डेब्ट म्यूच्युअल फंड्स, रियल एस्टेट और अन्य इन्वेस्टमेंट प्रोडक्ट्स में भी रिस्क होता है, लेकिन अलग-अलग प्रोडक्ट में रिस्क सीमा और रिटर्न क्षमता अलग-अलग होती है।

Debt funds investment product may be better for you even if not risk-free

क्या कोई इन्वेस्टमेंट टूल पूरी तरह रिस्क-फ्री हो सकता है, या क्या ऐसा मानना गलत है? प्रत्येक इन्वेस्टमेंट प्रोडक्ट में एक या कई तरह के रिस्क होते हैं। इससे इन्वेस्टमेंट प्रोडक्ट के रिटर्न का पता लगाने में काफी मदद मिलती है। उदाहरण के लिए, अधिकांश इन्वेस्टर्स को पता है कि इक्विटी इन्वेस्टमेंट्स में अधिक मार्केट-लिंक्ड रिस्क होने पर भी वे लम्बे-समय में मनचाहा रिटर्न के लिए सबसे अच्छे और सबसे बुरे मामले के परिदृश्यों का मूल्यांकन करने के बाद उनमें इन्वेस्ट करते हैं। इसी तरह, फिक्स्ड डिपोजिट, डेब्ट म्यूच्यूअल फंड्स, रियल एस्टेट, और अन्य इन्वेस्टमेंट प्रोडक्ट्स में भी रिस्क होता है, लेकिन अलग-अलग प्रोडक्ट में रिस्क सीमा और रिटर्न क्षमता अलग-अलग होती है।

हालिया डेब्ट फंड गड़बड़ी के कारण कई इन्वेस्टर्स के मन में शक पैदा हो गया है। स्टेबल रिटर्न्स के लम्बे इतिहास के कारण, कई इन्वेस्टर्स भूल गए थे कि डेब्ट फंड्स में भी कुछ रिस्क होता है। यदि आपको किसी प्रोडक्ट में इन्वेस्ट करने से पहले उसकी रिस्क सीमा और रिटर्न सम्भावना के बारे में पता है तो आप एक बेहतर इन्वेस्टमेंट डिसिशन ले सकते हैं। लेकिन इससे यह सच नहीं बदलता है कि डेब्ट फंड्स अभी भी, फाइनेंसियल लक्ष्यों को पूरा करने में मदद कर सकने वाले बेहतरीन इन्वेस्टमेंट टूल्स हैं। आइए देखते हैं कि डेब्ट फंड्स कैसे उपयोगी इन्वेस्टमेंट्स हैं और उनमें इन्वेस्ट करने से पहले आपको किन-किन बातों का ध्यान रखना चाहिए।

टैक्स बेनिफिट्स
डेब्ट फंड्स, लॉन्ग-टर्म कैपिटल गेन्स पर टैक्स का हिसाब लगाते समय इंडेक्सेशन बेनिफिट के माध्यम से महंगाई रिस्क से आपकी रक्षा करता है। तीन साल से ज्यादा समय के लिए किए गए डेब्ट फंड इन्वेस्टमेंट को लॉन्ग-टर्म माना जाता है, और उनके कैपिटल गेन्स को लॉन्ग-टर्म कैपिटल गेन्स (LTCG) कहा जाता है। तीन साल से कम के इन्वेस्टमेंट कैपिटल गेन्स को शॉर्ट-टर्म कैपिटल गेन्स (STCG) कहा जाता है। डेब्ट फंड्स पर इंडेक्सेशन बेनिफिट के साथ 20% LTCG टैक्स लगता है, जबकि STCG टैक्स, इनकम टैक्स स्लैब रेट के अनुसार लगता है। इसलिए, हायर टैक्स ब्रैकेट वाले इन्वेस्टर्स अपने LTCG बेनिफिट के लिए डेब्ट फंड्स में इन्वेस्ट करके ज्यादा टैक्स बचा सकते हैं।

इस पर कोई TDS नहीं लगता
डेब्ट फंड इन्वेस्टर्स की रिस्क उठाने की चाहत अक्सर कम होती है लेकिन वे बैंक FD से बेहतर रिटर्न चाहते हैं। इसलिए, FD और डेब्ट फंड्स की तुलना करने पर सब साफ़ हो जाएगा। एक फाइनेंसियल इयर में FD पर 40,000 से ज्यादा इंटरेस्ट मिलने पर, बैंक उस पर 10% TDS काट लेता है। लेकिन यदि आपकी टैक्स देनदारी कम है, तो आप TDS अमाउंट का रिफंड क्लेम कर सकते हैं। दूसरी तरफ, डेब्ट फंड्स पर TDS नहीं लगता है। डेब्ट फंड्स को रेडीम करने पर इन्वेस्टर की टैक्स देनदारी बढ़ जाती है। FD की तुलना में इंटरेस्ट रेट ट्रेंड डाउनवार्ड होने पर डेब्ट फंड्स ज्यादा रिटर्न देते हैं लेकिन इंटरेस्ट रेट ट्रेंड अपवार्ड होने पर FD ज्यादा रिटर्न देता है। लेकिन, प्रीमैच्योर FD विथड्रॉल पर पेनाल्टी लगती है जबकि इंटरेस्ट रेट गिरने पर FD में भी इन्वेस्टमेंट रिस्क होता है।

डेब्ट फंड में इन्वेस्ट करते समय ध्यान में रखने लायक बातें
डेब्ट फंड में इन्वेस्ट करने से पहले, आपको उससे जुड़े विभिन्न रिस्क के बारे में पता होना चाहिए। मार्केट में तरह-तरह के डेब्ट फंड्स हैं और हर प्रोडक्ट में अलग-अलग रिस्क होता है। तो, डेब्ट फंड का चुनाव करते समय किन-किन रिस्क को ध्यान में रखना चाहिए? डेब्ट फंड में इन्वेस्ट करते समय क्रेडिट रिस्क, लिक्विडिटी रिस्क, इंटरेस्ट रेट रिस्क, और ड्यूरेशन रिस्क जैसे रिस्क पर नजर रखनी चाहिए। इन्वेस्टर्स द्वारा अचानक रेडीम करने की होड़ के कारण क्रेडिट रिस्क पैदा होने और संदिग्ध AMC द्वारा समय पर अपनी होल्डिंग्स न बेच पाने के कारण हालिया डेब्ट फंड गड़बड़ी पैदा हुई है। इन्वेस्टर्स को इंटरेस्ट रेट रिस्क के बारे में भी पता होना चाहिए। इंटरेस्ट रेट बढ़ने पर, डेब्ट फंड्स का NAV गिरता है, जिससे इन्वेस्टर्स का रिटर्न भी गिर जाता है। लम्बे-समय तक होल्ड किए जाने वाले एसेट्स में इन्वेस्ट करने वाले डेब्ट फंड्स में अधिक इंटरेस्ट रेट वोलेटिलिटी रिस्क होता है।

मौजूदा परिस्थिति में, कम-समय के लिए सिक्योरिटीज को होल्ड करने वाले डेब्ट फंड में इन्वेस्ट करना ज्यादा सुरक्षित होता है। ऐसे फंड्स अधिकतर G-सेक या AAA-रेटेड सिक्योरिटीज में इन्वेस्ट करते हैं। बहुत कम-रिस्क उठाने वाले इन्वेस्टर्स, भारत बॉन्ड ETF में भी इन्वेस्ट कर सकते हैं। अब अधिकांश इन्वेस्टर्स को पता चल चुका है कि डेब्ट फंड्स रिस्क-फ्री नहीं होते। उन्हें यह भी समझना चाहिए कि डेब्ट फंड्स में, रिस्क को इक्विटी फंड्स की तुलना में अधिक कुशलतापूर्वक मैनेज किया जा सकता है। अपने फाइनेंसियल लक्ष्यों और पैसे की जरूरत के अनुसार डेब्ट फंड्स का सही चुनाव और डेब्ट फंड के पोर्टफोलियो एलोकेशन की नियमित निगरानी भी जरूरी है।

इस लेख के लेखक, BankBazaar.com के CEO आदिल शेट्टी हैं)
(डिस्क्लेमर: यह जानकारी एक्सपर्ट की रिपोर्ट के आधार पर दी जा रही है। बाजार जोखिमों के अधीन होते हैं, इसलिए निवेश के पहले अपने स्तर पर सलाह लें।) (ये लेख सिर्फ जानकारी के उद्देश्य से लिखा गया है। इसको निवेश से जुड़ी, वित्तीय या दूसरी सलाह न माना जाए)​

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जानें म्यूचुअल फंड के प्रचलित मिथक व सच्चाई के बारे में

जब डेब्ट फंड्स के बारे में अधिक जाने भी निवेश की बात होती है, तो शेयर बाजार के खतरों को देखते हुए उसके अलावे बेहतर निवेश विकल्प की तलाश होती है. ऐसे में म्यूचुअल फंड में निवेश की बात डेब्ट फंड्स के बारे में अधिक जाने सामने आती है तब इससे जुड़े कुछ मिथक भी दिमाग में घूमने लगते हैं जो निवेश प्रक्रिया में बाधा उत्पन्न करते हैं. म्यूचुअल फंड से जुड़े इन कुछ प्रचलित मिथकों और उससे जुड़ी सही बात को इस बार के कल्पवृक्ष में पेश किया जा रहा है, ताकि लोगों के मन में बैठे गलत सोच को दूर किया जा सके.

म्यूचुअल फंड में निवेश शुरू करने के लिए बड़ी राशि की जरूरत नहीं होती. इसमें न्यूनतम 500 रुपये से भी निवेश शुरू किया जा सकता है. सिस्टमेटिक इनवेस्टमेंट प्लान (एसआइपी) के माध्यम से हर महीने एक छोटी रकम से निवेश किया जा सकता है. वास्तव में जितना जल्द आप निवेश शुरू करेंगे, लंबी अवधि में उतना ही बेहतर रिटर्न मिलता है क्योंकि उसमें कंपाउंडिंग का लाभ डेब्ट फंड्स के बारे में अधिक जाने मिलता है.

म्यूचुअल फंड में विभिन्न तरह के एसेट क्लास में निवेश करता है जैसे इक्विटी, डेब्ट और हाइब्रिड फंड्स. निवेशक अपनी जोखिम क्षमता और निवेश लक्ष्य के अनुरूप एसेट क्लास चुन सकता है और हर एसेट क्लास जैसे इक्विटी के अंदर भी कैटेगराइजेशन बना हुआ है जैसे कि इक्विटी में इंडेक्स फंड, लार्ज कैप फंड, मिड कैप, स्मॉल कैप आदि.

डेब्ड फंड में मनी मार्केट, शॉर्ट टर्म डेब्ट और लॉन्ग टर्म डेब्ट. हर निवेशक अपनी जोखिम क्षमता के अनुसार इनमें से किसी भी एएमसी के फंड में निवेश कर सकता है. और अपने निवेश को डाइवर्सिफाइ कर सकता है. यह जरूरी नहीं कि ज्यादा फंड में निवेश करने से ज्यादा रिटर्न आयेंगे.

पिछला रिटर्न देख कर म्यूचुअल फंड में निवेश नहीं करना चाहिए. पूर्व में कम समय में बेहतर प्रदर्शन करनेवाले फंड भविष्य में भी बेहतर प्रदर्शन करेंगे, यह सुनिश्चित नहीं होता. फंड मैनेजर के परफॉरमेंस को ट्रैक करें वह ज्यादा बेहतर होता है. और पिछले एक या दो साल के रिटर्न को देखने के बजाय पिछले दस साल के रिटर्न को देखते हुए फंड में निवेश करना लाभकारी होता है. म्यूचुअल फंड में किये गये निवेश को समय-समय पर रिव्यू करना चाहिए कि वह आपकी जरूरतों के अनुसार प्रदर्शन कर रहा है या नहीं.

बिना डीमैट एकाउंट के भी म्यूचुअल फंड में निवेश किया जा सकता है. म्यूचुअल फंड के लिए डीमैट एकाउंट होना जरूरी नहीं है. वैसे आप डीमैट एकाउंट या बिना डीमैट एकाउंट के भी म्यूचुअल फंड में निवेश कर सकते हैं. म्यूचुअल फंड में निवेश के लिए डीमैट एकाउंट अनिवार्य नहीं है. निवेश करते समय केवल आपको एक आवेदन फार्म भरना पड़ता है और अपना केवाइसी पूरा करना होता है. अच्छा तरीका है कि आप किसी अच्छे वित्तीय सलाहकार की मदद लें जो आपको फंड के विषय में भी बतायेगा, आपकी शंकाओं को दूर करते हुए निवेश की प्रक्रिया को पूरा करने में मदद करेगा.

यह बहुत बड़ा भ्रम है. म्यूचुअल फंड नये और छोटे निवेशकों के लिए एक बेहतर निवेश विकल्प होता है. इसमें फंड मैनेज करने के लिए प्रोफेशनल फंड मैनेजर होते है. हाल के वर्षों में सेबी द्वारा उठाये गये कदमों से म्यूचुअल फंड्स में निवेशकों के लिए पारदर्शिता काफी बढ़ गयी है. इसमें ठगे जाने की संभावना बिलकुल नहीं होती. अगर आप पहली बार निवेश कर रहे हैं, तो बेहतर होगा कि आप इंडेक्स फंड या लार्ज कैप फंड में ही निवेश करें या एसआइपी के माध्यम से भी निवेश कर सकते हैं.

म्यूचुअल फंड में निवेश करने पर आयकर विभाग से 80सी के तहत कर छूट प्राप्त होता है. उसके लिए म्यूचुअल फंड के इक्विटी लिंक्ड सेविंग स्कीम (इएलएसएस) में ही निवेश करना होता है. इसका निवेश इक्विटी में होता है और इक्विटी का फायदा इसमें मिलता है. इक्विटी लिंक्ड सेविंग्स स्कीम भी एक तरह का म्यूचुअल फंड ही है. इसमें तीन साल का लॉक इन पीरियड होता है. इसका फायदा है कि यह एक टैक्स सेविंग इंस्ट्रूमेंट है जो टैक्स बचाने में आपकी मदद करता है.

ऐसा बिलकुल नहीं है. फंड्स का प्रदर्शन बहुत सारे कारकों पर निर्भर होता है. और यह एक इकोनॉमिक साइकिल पर काम करता है. ऐसा जरूरी नहीं कि हर तरह के फंड एक साथ अच्छा रिटर्न दे. लंबी अवधि और अधिक जोखिम लेनेवाले निवेशकों के लिए स्मॉल कैप सेक्टर फंड्स ठीक हो सकता है, पर नये निवेशक, छोटे निवेशक और कम जोखिम लेने वाले निवेशकों को हमेशा डाइवर्सिफाइड पोर्टफोलियो में ही निवेश करना चाहिए. सेक्टर फंड डेब्ट फंड्स के बारे में अधिक जाने में तभी निवेश करें जब आपको उस सेक्टर के विषय में पूरी जानकारी हो.

म्यूचुअल फंड में अपने निवेश को समय समय पर रिव्यू करते रहें. और जिस लक्ष्य और उद्देश्य के लिए निवेश किया गया था, वह पूरा हो रहा है , उसे देखें. कई बार देखा जाता है कि जो निवेशक लंबी अवधि के लिए निवेश कर रहे हैं और अगर कम समय में निगेटिव रिटर्न आ गया तो वे अपना एसआइपी रोक देते हैं और अपना निवेश की अपनी प्रक्रिया को बंद कर देते हैं. यह उनके लिए बिलकुल सही नहीं है.

अगर आपने सही फंड चुना है और लंबी अवधि यानी दस से पंद्रह साल के लिए निवेश किया है तो यह मान कर चले कि आपका फंड उतार चढ़ाव से जायेगा और इसके लिए आपको मानसिक रूप से तैयार भी रहना चाहिए. यह आप और आपके निवेश के लिए बेहतर होता है. इसके लिए आप किसी अच्छे वित्तीय सलाहकार की मदद ले सकते हैं.

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गोल्ड या म्युच्यूअल फंड्स: किसमें इन्वेस्ट करना चाहिए?

सोना (Gold), भारत के लोगों का पसंदीदा इन्वेस्टमेंट ऑप्शन (Investment option) रहा है। यह अनिश्चितता से बचाने के साथ-साथ महंगाई का सामना करने में भी मदद करता है। इसके साथ भारत के लोगों का भावनात्मक जुड़ाव भी रहा है। लेकिन, पिछले कुछ सालों में, म्युच्यूअल फंड्स (Mutual Funds) को काफी लोकप्रियता मिली है जिसकी वजह इसका शानदार लॉन्ग-टर्म रिटर्न (Long term return), इन्वेस्टमेंट में आसानी, रिस्क-मिटिगेशन टूल्स जैसे SIP, और टैक्स-एफिशिएंसी है।

gold or mutual funds: where to invest

गोल्ड या म्युच्यूअल फंड्स: किसमें इन्वेस्ट करना चाहिए?

इन्वेस्टमेंट का उद्देश्य निर्धारित डेब्ट फंड्स के बारे में अधिक जाने करें

सबसे पहले इन्वेस्टमेंट का उद्देश्य निर्धारित करें। आपको शुरू से ही मालूम होना चाहिए कि आप एक इन्वेस्टमेंट स्कीम में क्यों इन्वेस्ट करना चाहते हैं, बच्चों की पढ़ाई, होम लोन डाउन पेमेंट डेब्ट फंड्स के बारे में अधिक जाने फंड, रिटायरमेंट फंड, या शादी के खर्च के लिए। उद्देश्य निर्धारित करने के बाद उसे पूरा करने के लिए सही इन्वेस्टमेंट ऑप्शन चुनें और एक सही समय-सीमा निर्धारित करें। गोल्ड और म्यूच्यूअल फंड्स दोनों के उद्देश्य अलग-अलग होते हैं। जैसे, स्थिर और कम लॉन्ग-टर्म रिटर्न देने वाले गोल्ड इन्वेस्टमेंट का इस्तेमाल बचाव के लिए, और मध्यम से अधिक रिस्क और ज्यादा लॉन्ग-टर्म रिटर्न वाले म्यूच्यूअल फंड्स का इस्तेमाल सेविंग्स और वेल्थ क्रिएशन के लिए करना चाहिए।

Gold और MF के रिस्क और रिवार्ड को समझें

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इनमें इन्वेस्ट करते समय इनके रिस्क और रिवार्ड को समझना जरूरी है। हर इन्वेस्टमेंट ऑप्शन, हर उद्देश्य को पूरा नहीं करता है। इनके रिस्क और रिवार्ड के आधार पर आप सही ऑप्शन चुन सकते हैं। विरासत में मिले सोने के साथ भावनात्मक जुड़ाव होने के कारण उसे बेचना मुश्किल हो जाता है। दोनों में इन्वेस्ट करना आसान है लेकिन उनके रिस्क अलग-अलग होते हैं। फिजिकल गोल्ड इन्वेस्टमेंट में शुद्धता और भण्डारण की चिंता रहती है जबकि म्यूच्यूअल फंड इन्वेस्टमेंट में मार्केट रिस्क रहता है। डिजिटल गोल्ड इन्वेस्टमेंट में शुद्धता और भण्डारण की चिंता नहीं रहती है लेकिन उनका लॉन्ग-टर्म रिटर्न आपके फाइनेंसियल लक्ष्यों को समय पर पूरा करने के लिए नाकाफी हो सकता है।

इन्वेस्ट करने का तरीका

इन दोनों में इन्वेस्ट करने के कई तरीके हैं। म्यूच्यूअल फंड्स में सिस्टमेटिक इन्वेस्टमेंट प्लान (SIP) या लम्प-सम तरीके से इन्वेस्ट किया जा सकता है और सोने को ऑनलाइन या ऑफलाइन से ख़रीदा जा सकता है। आप लम्प-सम तरीके से भी सोने और म्यूच्यूअल फंड्स में इन्वेस्ट कर सकते हैं। लेकिन, कीमत घटने पर काफी नुकसान हो सकता है। और सही समय पर इन्वेस्ट करने पर काफी मुनाफा भी हो सकता है।

कितने से शुरू

आप MF में SIP तरीके से कम-से-कम 500 रु. से इन्वेस्टमेंट शुरू कर सकते हैं। SIP तरीके से इन्वेस्ट करने पर सेविंग की लत लगाने, रुपी कॉस्ट एवरेजिंग का लाभ उठाने, और शॉर्ट-टर्म मार्केट वोलेटिलिटी को बर्दाश्त करने में मदद मिलती है। लोग अक्सर फिजिकल गोल्ड जैसे गहने, ईंट और सिक्कों में इन्वेस्ट करते हैं। लेकिन भण्डारण और शुद्धता की चिंता, मेकिंग चार्ज और GST के कारण आपका एक्चुअल रिटर्न कम हो सकता है। सोने में डिजिटल तरीके से इन्वेस्ट करना बेहतर होता है। गोल्ड ETF एक अच्छा ऑप्शन है क्योंकि इसमें सोने में डिमैटरियलाइज्ड रूप में इन्वेस्ट करने और उसे आसानी से बेचने में मदद मिलती है लेकिन कोई टैक्स बेनिफिट नहीं मिलता है जिससे लॉन्ग-टर्म रिटर्न पर असर पड़ सकता है। सरकार-समर्थित सॉवरेन गोल्ड बॉन्ड्स (SGB), सोने में इन्वेस्ट करने का एक और अच्छा डिजिटल तरीका है जिस पर 2.5% इंटरेस्ट मिलता है जबकि मैच्योरिटी रिडेम्पशन पर कोई कैपिटल गेन्स टैक्स नहीं लगता है। लेकिन इसमें 8 साल का लॉक-इन पीरियड होता है।

इन्वेस्टमेंट कितनी होनी चाहिए

किसी भी इन्वेस्टमेंट प्रोडक्ट में अपनी उम्र, इन्वेस्टमेंट पीरियड, रिटर्न की उम्मीद, रिस्क क्षमता और फाइनेंसियल लक्ष्य के आधार पर इन्वेस्ट करना चाहिए। अच्छा परिणाम पाने के लिए अपने इन्वेस्टमेंट पोर्टफोलियो को डायवर्सिफाई करें। गोल्ड या म्यूच्यूअल फंड्स में इन्वेस्ट करने के मौके को हाथ से जाने न दें लेकिन एक ही जगह सारा पैसा इन्वेस्ट न करें। आपका गोल्ड इन्वेस्टमेंट, आपके इन्वेस्टमेंट पोर्टफोलियो का 5-10% होना चाहिए क्योंकि सोने की कीमत लम्बे समय में एक जैसी बनी रहती है। म्यूच्यूअल फंड्स में अपने इन्वेस्टमेंट को अलग-अलग केटेगरी में इन्वेस्ट करने का ऑप्शन मिलता है। इक्विटी फंड्स में लॉन्ग-टर्म लक्ष्यों के लिए लम्बे समय तक इन्वेस्टेड रहना चाहिए जबकि लॉन्ग तौर शॉर्ट टर्म लक्ष्यों के लिए डेब्ट फंड्स में इन्वेस्ट किया जा सकता है।

सर्टिफाइड एडवाइजर की भी लें मदद

गोल्ड और म्यूच्यूअल फंड्स (Gold and Mutual Funds) दोनों में अपनी-अपनी खूबियां और खामियां हैं। इसलिए, उपरोक्त बातों के आधार पर ही कोई फैसला लें। जरूरत पड़ने पर आप एक सर्टिफाइड फाइनेंसियल एडवाइजर (Certified financial planner) की मदद ले सकते हैं। वह आपके लिए इसलिए ज्यादा मुफीद हो सकता है क्योंकि वह आपकी वैयक्तिक वित्तीय योजना बनायेंगे।

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